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संवर और निर्जरा : एक विश्लेषण * ५१ *
वह माध्यम (निमित्त) से लड़ता-भिड़ता नहीं ऐसा संवर-निर्जरा-साधक सिंहवृत्ति का अनुसरण करता है। उसका सतत चिन्तन रहता है कि यदि पोस्टमैन किसी को उसके नाम का पत्र दे और उस पत्र में दुःखद समाचार आये तो पोस्टमैन का उसमें क्या दोष? पोस्टमैन को उस दुःखद समाचार के लिए गाली देने या भला-बुरा कहने से क्या मतलब? क्योंकि पोस्टमैन तो केवल पत्रवाहक है। वह हमारा शत्रु नहीं है। ____टी. वी. के पर्दे पर दृश्य आए कि लक्ष्मण को रावण ने शक्ति प्रहार से मूर्च्छित कर दिया तो इसमें टी. वी. का क्या दोष? उसमें जैसा दृश्य-श्रव्य रिले किया जाता है, उसे ही वह बताता है। टी. वी. एक माध्यम है-पर्दा है, वह न तो अपनी इच्छानुसार अच्छा बताता है, न बुरा। अतः बुद्धिमान् व्यक्ति टी. वी. को न तो कोसता है और न ही फोड़ता है जबकि श्वानवृत्ति वाला पागलपन जैसे आवेश में आकर टी. वी.. को तोड़ने-फोड़ने लगेगा। सिंहवृत्ति वाला साधक तथ्य और कथ्य दोनों का ज्ञाता-द्रष्टा बनकर समभाव से तत्त्वज्ञान की प्रेरणा ले लेता है। टी. वी. पर यदि भारतीय क्रिकेट टीम के हारने और रिलायन्स टीम के जीतने का दृश्य दिखाया जाये तो उसे देखकर टी. वी. के प्रति यानी उक्त दृश्य के प्रति द्वेष, ईर्ष्या या आवेश में आकर उस माध्यमरूप टी. वी. या उसके पर्दे को मात्र माध्यम न मानकर उसे तोड़ता-फोड़ता है, इसी प्रकार का कृत्य श्वानवृत्ति वाले का है। वह कर्मजनित दुःख को भुगवाने वाले माध्यम को पकड़ता है और उसके साथ संघर्ष, क्लेश करता है। वह अपमान करने, दुःख देने वाले निमित्त को अपना शत्रु मानकर उसके साथ लड़ता-भिड़ता है। इसका नतीजा यह होता है कि मूल कर्मशत्रु को परास्त करना तो दूर रहा, उलटे अशुभ कर्म की अन्तहीन परम्परा बढ़ाता है, वैरवृत्ति की परम्परा जन्म-जन्मान्तर तक बढ़ाता ही चला जाता है।
सहन करो, प्रतिकार या मुकाबला मत करो मान लो, जैसे एक ऐसा कैदी है, जिसके लिए कोर्ट ने जेलर से कहा कि इस कैदी की नंगी पीठ पर प्रतिदिन ५0 कोड़े मारो। अगर लहूलुहान हो जाए, अनेक घाव पड़ जाएँ तो उन पर नमक छिड़क देना, यह कितना ही चीखता-चिल्लाता रहे, इस पर रहम मत करना। इस पर जेलर कोर्ट के उसी आदेश का पालन करता है। कैदी को विवश होकर यह सव यातना प्रतिदिन सहनी पड़ती है। कैदी के लिए यह सजा अनुकूल है या नहीं? उसकी यह यातना सहने की इच्छा है या नहीं? ऐसा कुछ भी नहीं देखा जाता है। जेलर को कोर्ट के आदेश का पालन करना अनिवार्य होता है। इसी प्रकार कर्मसत्ता की कोर्ट का भी इसी प्रकार की सजा देने का किसी पूर्वकृत भयंकर पापकर्मी के लिए आदेश हो और कोई भी निमित्त उसे सजा दे