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________________ • संवर और निर्जरा : एक विश्लेषण ४९ बायें हाथ का खेल हो, उस निर्दयी व्यक्ति को जल्लाद को सौंपकर उसे मारने का ऑर्डर भी दे दिया गया हो, परन्तु यदि कर्मसत्ता ने उस व्यक्ति के लिए मौत की सजा न दी हो तो किसकी मजाल है, उस व्यक्ति का बाल भी बाँका कर सके । फाँसी पर चढ़ाते समय जल्लाद के मन में दया का भाव आ जायेगा और वह मौत के बदले उसकी जिंदगी देने वाला वन जायेगा। कर्मसत्ता के द्वारा दिये गए दण्डादेश को टालना अशक्य ठीक इसके विपरीत यदि कर्मसत्ता ने मौत की सजा फरमा दी हो तो रक्षक भी भक्षक बन जाते हैं । श्रीमती इन्दिरा गांधी को उनके आवास स्थान पर उनके ही अंगरक्षकों ने गोली से उड़ा दिया था। जबकि राजीव गांधी पर राजघाट जैसे सार्वजनिक स्थल पर सात दिन से लुक - छिपकर आतंकवादियों ने कई गोलियाँ चलाई थीं, फिर भी उस समय उनका बाल भी बाँका नहीं हुआ । निष्कर्ष यह है राजीव गांधी को वहाँ मारने की आतंकवादियों की इच्छा थी, मगर कर्मसत्ता की ऐसी इच्छा नहीं थी । ' कर्मसत्ता द्वारा दिये गए दण्डादेश को टालने वाले या उसके विरोधकर्त्ता को अधिक दण्ड कोई कर्म जब तक नहीं बँधा है अथवा बँधा हुआ कर्म जब तक सत्ता में पड़ा है; उदय में नहीं आया है, तब तक जीव (संसारी आत्मा) कर्मसत्ता के अधीन नहीं है, स्वतंत्र है, किन्तु कर्म बाँधने पर उसके उदय में आने के बाद वह परतंत्र है । फिर तो कर्मसत्ता जैसे-जैसे ऑर्डर छोड़ती है, वैसा ही बर्ताव वे जीवरूपी अधिकारी उस कर्म के कैदी के साथ करते हैं । जैसे कोर्ट की सजा अपराधी को सुनाये जाने के बाद जेलर उस अपराधी कैदी पर कोड़े बरसाता है, उस समय कैदी जेलर के प्रति क्रुद्ध होकर उसका सामना करने लगे और कहे कि “तू मुझे मास्ता है तो मैं भी तुझे मारूँगा । " ऐसी स्थिति में वह कैदी और अधिक दण्डपात्र माना जाता है। उस कैदी के इस अनुचित बर्ताव को देखकर कोर्ट उसकी सजा की अवधि और अधिक बढ़ा देती है और सजा भी कठोर कर देती है । इसी प्रकार कर्मसत्ता की कोर्ट किसी अपराधी ( पूर्वकृत अशुभ कर्मकर्त्ता) को जो सजा देती है और उस सजा को भुगवाने वाले अन्य जीवरूपी एजेंट ( जेलर) को हुक्म करती है - "अमुक व्यक्ति को अपमानित करके दण्डित करो।" उस समय यदि वह कैदी उससे यह कहे कि “तू मुझे गाली या अपशब्द बोलता है, तो मैं भी तुझे गाली दूँगा १. 'हंसा ! तू झील मैत्री -सरोवर में से भावांश ग्रहण. पृ. १०१
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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