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ॐ ३८ 8 कर्मविज्ञान : भाग ६ ®
करने के लिए शक्ति त्रिवेणी अपेक्षित है। एक व्यक्ति सब तरह से सम्पन्न है, अकस्मात् पद, प्रतिष्ठा, सम्पत्ति आदि सब छिन जाते हैं, उस समय यदि धर्मचेतना की शक्ति त्रिवेणी न हो तो व्यक्ति उन्मत्त, दिग्भ्रान्त या हृदय बंद होने से मरणशरण हो सकता है।
इस प्रकार अष्टविध कर्मों से मुक्त होने के लिए धर्म और कर्म का लक्षण, लक्ष्य, उद्देश्य, कार्य आदि भलीभाँति समझकर धर्म की अन्तिम मंजिल मोक्ष (कर्मों से मुक्ति) पाने के लिए उपर्युक्त शक्तित्रयरूप धर्मचेतना जाग्रत करनी चाहिए। तभी कर्मों का क्षय, क्षयोपशम या उपशम आसानी से किया जा सकता है।