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________________ * धर्म और कर्म : दो विरोधी दिशाएँ ३७ आयुष्यकर्म को भोगकर क्षय कर सकता है, नया आयुष्य नहीं बाँधकर सर्व कर्मों का क्षय कर सकता है अथवा पूर्व अशुभ आयु को समभाव से भोगकर नयी शुभायु का बन्ध कर सकता है । अल्पायु के बदले शुभ दीर्घायुष्य का बन्ध कर सकता है। यही इस कर्म पर शुद्ध धर्म की विजय है। धर्म की शक्ति त्रिवेणी द्वारा आठों ही कर्मों से मुक्ति संभव भगवान महावीर ने धर्म के मुख्यतया तीन लक्षण प्रतिपादित किये। पहला लक्षण है- अहिंसा | इसका फलितार्थ है - राग-द्वेष का न होना; दूसरा लक्षण हैसंयम अर्थात् पाँचों इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण, कषायों पर नियंत्रण तथा समताभाव में रहना और तीसरा लक्षण है - तप अर्थात् कष्टों को सहने की क्षमता, तितिक्षा एवं उपसर्ग तथा परीषह आने पर समता और शमता में रहना । संक्षेप में धर्म का लक्ष्य - समता है और उसकी मंजिल है - मोक्ष-कर्मों से मुक्ति । साधारण व्यक्ति कर्मों की शक्ति को प्रबल मानता है, क्योंकि कर्मों का लक्षण ही मोह में, विषमता में तथा राग-द्वेष में लिपटाना है; सुख-दुःख, अनुकूलता-प्रतिकूलता, प्रियता-अप्रियता, प्रशंसा-निन्दा आदि द्वन्द्वों में फँसाए रहना है । किन्तु यदि व्यक्ति में धर्मचेतना यानी समता की, तितिक्षा की या वीतरागता की चेतना जाग्रत हो जाए तो कर्मचेतना और कर्मफलचेतना को वह परास्त कर सकता है। सुख-दुःख, अनुकूलता-प्रतिकूलता, लाभ-अलाभ, निन्दा - प्रशंसा, सम्मान-अपमान, जीवन-मरण, प्रियता - अप्रियता आदि द्वन्द्वों के उपस्थित होने पर समता और तितिक्षा की चेतना जाग्रत न हो तो कर्मों के चक्र को नहीं तोड़ा जा सकता। धर्मचेतना को जाग्रत करने के लिए व्यक्ति में अ-राग- अद्वेष की शक्ति, समभाव से सहन करने की शक्ति ( तितिक्षा शक्ति) तथा समता की शक्ति, ये तीनों शक्तियाँ जाग्रत होनी चाहिए। यदि ये तीनों शक्तियाँ साथ में नहीं हैं तो अनुकूलता में मोह, राग, आसक्ति, स्थायी रखने की आकांक्षा, अहंकार आदि विकार आ सकते हैं तथा प्रतिकूलता में या प्रतिकूल घटना से मन में द्वेष, अरुचि, घृणा, तनाव, वैर- विरोध, हिंसा, द्रोह आदि पैदा हो सकते हैं। अतः अनुकूलता और प्रतिकूलता, दोनों को सहन करने के लिए तितिक्षा शक्ति, वीतरागता की शक्ति तथा समता की शक्ति अनिवार्य है। अगर अनुकूलता को सहन करने और उसमें सम रहने की शक्ति नहीं है तो व्यक्ति या तो अहंकाराविष्ट हो सकता है अथवा मदोन्मत्त या हर्षावेश से उन्मत्त बनकर अकाल मृत्यु का शिकार हो सकता है। एक धोबी को किसी ने आकर खुशखबरी सुनाई कि "तुम्हारे नाम की लॉटरी खुली है, उसमें एक लाख रुपये उठे हैं।” “ओहो ! एक लाख !” बस, यों कहकर हर्षावेश में वह नाचने लगा और कुछ ही क्षणों में उसका हार्ट फेल हो गया । प्रतिकूलता को भी सहन
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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