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ॐ अविरति से पतन, विरति से उत्थान-१ ® ४६१ ®
स्वामी बनकर आध्यात्मिक साधना करते-करते आचार्य पद पर पहुँच गए। आत्मदृष्टि-सम्पन्नता और आत्म-साधना के फलस्वरूप वे पापकर्मों से मुक्त होकर ऊवारोहण कर गए। ___ चिलातीपुत्र भी चौर्यकर्म में प्रवृत्त हुआ था। उसने सुषमा नाम की श्रेष्ठीपुत्री का अपहरण किया। श्रेष्ठी, श्रेष्ठीपुत्रों और राजपुरुषों ने उसे पकड़ने के लिए उसका पीछा किया। जब भागते-भागते थक गया तो उसने सुषमा का सिर काटकर हाथ में ले लिया, बाकी का भाग वहीं गिराकर तलवार लिये आगे भागा। भागते-भागते सहसा उसके मन में एक विचार कौंधा-“यह भी कोई जीवन हैरात-दिन अशान्ति, भय, उद्वेग और चंचलता। मुझे अपनी आत्म-शान्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए।'' संयोगवश एक शान्त तपस्वी मुनि मिले। उनसे आत्म-शान्ति का उपाय पूछा। उन्होंने इसे अब आत्मदृष्टि-सम्पन्न देखकर कहा-“तीन सूत्रों पर चलो-उपशम, संवर और. विवेक।" तीनों पदों पर गहन चिन्तन के फलस्वरूप उसने कायोत्सर्गस्थ होकर सभी कष्ट और उपसर्ग सहे और पापकर्मों से विरत होकर देवलोक में ऊर्ध्वारोहण किया। ऐसे अनेकों उदाहरण जैन, वैदिक, बौद्ध आदि धर्मों के शास्त्रों में मिलते हैं, जिसमें चौर्यकर्म से विरत होने पर उन्होंने आत्मदृष्टि-परायण होकर कृर्वारोहण किया।?. चतुर्थ अब्रह्मचर्य (मैथुन) पापस्थान : स्वरूप और उत्पत्ति
अब्रह्मचर्य पापस्थान : स्व-धर्म को छोड़कर
पर-धर्म में रमण करने से अब्रह्मचर्य पापस्थान भी पर-भावों की ओर (मोह, राग, द्वेष, आसक्ति, मूर्छा आदि विभावों के सहित) दृष्टि से उत्पन्न होता है। 'स्थानांगसूत्र' में सर्वप्रथम सूत्र है-“एगे आया।" (आत्मा एक है), यह कथन संख्या की दृष्टि से नहीं, स्वभाव = स्वरूप की दृष्टि से है। इसका फलितार्थ यह भी सम्भव है-स्व-भाव या स्व-धर्म की दृष्टि से आत्मा और परमात्मा में कोई अन्तर नहीं है। इस विराट् विश्व में जितनी भी आत्माएँ हैं (चाहे वे चींटी की हों, हाथी की हों, मनुष्यों की हों या सिद्ध परमात्मा की हों), वे स्व-भाव = स्व-धर्म की दृष्टि से शुद्ध चेतनास्वरूप हैं, अनन्त ज्ञान-दर्शन-सुख-शक्ति-सम्पन्न हैं और पूर्ण निर्मल (कर्ममलों से रहित) हैं। जो विभिन्नता या विचित्रता दिखाई दे रही है, वह उत्पन्न होती है-विभावों, पर-भावों १. (क) देखें-दृढ़प्रहारी का वृत्तान्त आवश्यक कथा में
(ख) देखें-कल्पसूत्र सुबोधिका में प्रभव स्वामी का जीवन वृत्तान्त (ग) देखें-ज्ञातासूत्र, अ. १८ में चिलातीपुत्र वृत्तान्त