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ॐ ४६० ॐ कर्मविज्ञान : भाग ६ 8
काँटा गड़ गया। भगवान महावीर के समवसरण के पास उसने जो कानों में अँगुलियाँ डाल रखी थीं, उन्हें काँटा निकालने के लिये ज्यों ही निकाली, त्यों ही उसके खुले कर्णकुहरों में भगवान महावीर की वाणी पड़ गई। देवों की पहचान के. विषय में ये बातें सुनीं। रोहिणेय पकड़ा जाने पर प्रमाण न मिलने पर दण्ड से बच जाता। अभयकुमार ने उसे पकड़ने के लिए कृत्रिम देवलोक के वातावरण का षड्यंत्र रचा। किन्तु उसे महावीर के देवों की पहचान के वे वचन याद आए और समझ गया कि यह मुझे पकड़ने का षड्यंत्र रचा गया है। अतः उसने अपना झूठा परिचय दिया, जिससे छूट गया। सोचा-जब भगवान के इतने से वचनों ने मुझे गिरफ्तार होने से बचाया है, तो अगर मैं उनकी पूरी देशना सुन लूँ, तो मेरे भव-भव के बन्धन कट सकते हैं, अतः वह वहाँ से छूटकर सीधा भगवान के समवसरण में पहुंचा। अनन्त उपकारी प्रभु महावीर का उपदेश सुनकर उसकी आत्मा जाग्रत हो गई। उसका ध्यान और चिन्तन, उसके मुख और नेत्र जो पहले पर-पदार्थों के प्रति अभिमुख थे, वे अब आत्मा की ओर अभिमुख हो गए। उसने अपने अन्तःकरण से अपने चौर्यकर्मों के प्रति पश्चात्तापपूर्वक भगवान के समक्ष आलोचना की, जाहिर में गर्हा की और चोरी का सारा माल महामंत्री अभयकुमार को सौंपकर पवित्र भावों से भगवान के चरणों में आर्हती दीक्षा अंगीकार कर ली। अपने पिछले पापकर्मों के क्षय के लिए कठोर तपश्चर्या तथा कठोर साधना की। साधुत्व का पालन करके वह देवलोक में गया। आगामी जन्मों में वह सर्वकर्मनिमुक्तिरूप मोक्ष को प्राप्त करेगा। यह है आत्मदृष्टि-सम्पन्न व्यक्ति का चौर्यकर्म से सर्वथा विरत होकर ऊर्ध्वारोहण का ज्वलन्त उदाहरण !२
दृढ़प्रहारी भी महाचोर ही था। किन्तु जब वह आत्मदृष्टि सम्पन्न बना तो घोर तपश्चर्या एवं उपसर्गों को समभाव से सहकर सर्व पापकर्मों से ही नहीं, सर्वकर्मों से मुक्त होकर मोक्षगति में ऊर्ध्वारोहण कर गया। .
और प्रभव चोर कौन था? वह भी जब पर-भावों पर दृष्टि गड़ाए हुए था, तब ४९९ चोर साथियों के साथ जम्बूकुमार के विवाह में ससुराल से प्रीतिदान के रूप में आए हुए धन को चुराने हेतु आया था। परन्तु जम्बूकुमार का अपनी आठ पत्नियों के साथ पर-भावों के प्रति या काम-कामनाओं के प्रति वैराग्यवर्द्धक वार्तालाप सुनकर उन्होंने पर-भावों से अपना मुख आत्म-भावों की ओर मोड़ लिया
और प्रभव सहित ५०० ही चोरों ने चौर्यकर्म से सदा के लिए विरत होकर जम्बूकुमार के साथ भागवती दीक्षा अंगीकार कर ली। फलतः प्रभव चोर से प्रभव
१. देवों की पहचान के लिए गाथा
अनिमिस-नयणा मणकज्ज-साहणा पुप्फदाम-अमिलाणा।
चउरंगुलेण भूमिं न छुवंति सुरा जिणा बिंति॥ २. देखें-व्यवहारसूत्र वृत्ति में रोहिणेय चोर का वृत्तान्त