SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 479
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॐ अविरति से पतन, विरति से उत्थान-१ * ४५९ ॐ अहंकार करना, उसे धर्म का रूप देना आदि। शासनकर्ता-अदत्त का अर्थ हैराज्यविरुद्ध, राष्ट्रविरुद्ध कार्य करना, राष्ट्र के कानूनों, नियमों तथा मर्यादाओं को तोड़ना, शासनकर्ता का आदेश जिस राज्य में नहीं रहने का हो तो उस राज्य में रहना शासनकर्ता अदत्तादान है। शेष अदत्तादानों का अर्थ स्पष्ट है। अभग्नसेन चोर को चौर्यकर्म की भयंकर सजा _ 'दुःखविपाकसूत्र' में अभग्नसेन चोर का करुण वृत्तान्त है। इन्द्रभूति गौतम स्वामी भिक्षाचरी के लिए नगर के राजमार्ग से होकर जा रहे थे। रास्ते में एक व्यक्ति को देखा, जो नीचा मुँह किये वधस्तम्भ के साथ बाँधा हुआ था। उसको चौर्यकर्म की सजा-मृत्युदण्ड देने से पहले उसके नाक-कान काट लिये थे। साथ ही उसकी आँखों के समक्ष उसके सभी रिश्तेदारों को क्रमशः खड़ा करके राजपुरुष चाबुकों से निर्दयतापूर्वक उन्हें मार रहे थे। फिर उस चोर के शरीर पर नुकीले भाले खोंसकर उसी के शरीर के माँस के छोटे-छोटे टुकड़े निकालकर उसे ही खिला रहे थे। उसके शरीर से बहती हुई रक्त की धारा को एक बर्तन में भरकर उसी को पिला रहे थे। कितनी क्रूर और करुण सजा मिली थी अभग्नसेन चोर को। गणधर गौतम ने जब भगवान महावीर से उसको इतने क्रूर दण्ड मिलने का कारण पूछा तो उन्होंने कहापूर्व-जन्मों के भयंकर पापकर्मों के संस्कारों से इस जन्म में महाचोर के घर में जन्म पाकर वैसे ही पापकर्म करने लगा, उसके पूर्वकृत पापकर्मों का फल उसे मिल रहा है। इसे जन्म-जन्मान्तर से पापकर्मों में लिप्त रहने के कारण बोधि नहीं मिली, न ही इस जन्म में मिल पाई, भविष्य में भी कई जन्मों तक मिलनी कठिन है। इस कारण आत्म-देवता की ओर तो इसका ध्यान, दृष्टि व चिन्तन जाता ही कैसे? वह पूर्व-जन्मों में भी विविध भयंकर पापों में डूबा रहा, इस जन्म में भी डूबा है; क्योंकि इसका मुख व नेत्र सजीव-निर्जीव पर-पदार्थों की ओर ही रहे हैं। चौर्यकर्म से विरत होने वाले ऊर्ध्वारोही हुए . 'जैन इतिहास में ऐसे भी चोरों का जीवन वृत्तान्त मिलता है, जिनका एक दिन पर-भावों की ओर मुख था, तो वे भयंकर चोरियाँ करते थे, पकड़ में भी नहीं आते थे, किन्तु जब उन्होंने स्वभाव (आत्म-भावों) की ओर मुख किया तो चौर्यकर्म को तिलांजलि देकर आत्मा के उत्थान में आध्यात्मिक विकास में लग गए। ___रोहिणेय एक भयंकर चोर का बेटा था। उसके पिता लोहखुर ने अन्तिम समय में पुत्र को पास में बुलाकर कहा-“अपनी आजीविका अच्छी तरह चलाना है तो भगवान महावीर का उपदेश कभी मत सुनना।” रोहिणेय ने बाप को विश्वास दिलाया। एक दिन वह चोरी के लिए जा रहा था, रास्ते में उसके पैर में तीखा १. देखें-दुःखविपाकसूत्र में अभग्नसेन चोर की कथा
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy