SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अविरति से पतन, विरति से उत्थान - १ ४५५ कु असत्य मुख्यतया चार कारणों से बोला जाता है - क्रोधवश, लोभवश, भयवश और हास्यवश ।' क्रोध, आवेश, रोष, ईर्ष्या और द्वेष, अहंकार आदि एक ही थैली चट्टे-बट्टे हैं | इसलिए अधिकांश लोग इनसे प्रेरित होकर असत्य बोलते हैं, मिथ्या दोषारोपण करते हैं, झूठा कंलक लगाते हैं, निन्दा - चुगली भी करते हैं । कई लोग व्यापार-धंधे, राज्य, सत्ता, धन आदि के लोभ में आकर झूठ बोलते हैं। बेईमानी, ठगी, भ्रष्टाचार, तस्करी, रिश्वतखोरी, चोरी आदि भी असत्य आचरण के अग्रदूत हैं। कई लोग पापकृत्य करते हुए या करके पकड़े जाने के डर से, अपने मालिक आदि के डर से, दण्ड पाने के भय से अथवा बच्चे बाप द्वारा पीटे जाने के डर से झूठ बोलते हैं। अधिकांश लोग बिना ही कारण हँसी-मजाक में झूठ का प्रयोग करते हैं। किसी ने एक सेठ को तार दिया - " आपका पुत्र मर गया है।" तार पढ़ते ही सेठ को बड़ा आघात लगा, तत्काल उसका हार्ट फेल हो गया । सेठ ने वहीं दम तोड़ दिया। उसके ठीक दो घंटे बाद तार आया- 'फर्स्ट अप्रैल फूल' ( पहली अप्रैलमूर्ख बनाने की तारीख ) । कितना भयंकर परिणाम आया - उक्त हँसी-मजाक में असत्य सेवन का ?२ असत्य के विभिन्न रूप और उनका फल दुर्गतिगमन इसी प्रकार एकान्त कथन करना, सिद्धान्त या जिन-वचन से निरपेक्ष कथन करना, उत्सूत्र भाषण करना, सद्भाव-प्रतिषेध, अभूतोद्भावन, गर्हा-असत्य, भूत ( अतीत में घटित का) निह्नव, (छिपाना), मिथ्या अर्थ बताना, अनुमान से असत्य कथन आदि सब असत्य के प्रकार हैं। स्थूलमृषावाद के भी ५ कारण हैं(१) कन्यालोक, (२) गवालोक, (३) भूम्यालोक, (४) न्यासापहार, (५) कूटसाक्षी, अर्थात् कन्या, गो, भूमि आदि के लिए झूठ बोलना, किसी की धरोहर हड़पने के लिए झूठ बोलना, झूठी साक्षी देना आदि भी स्थूल झूठ के प्रकार हैं। किसी भी प्रकार का झूठ हो, वह दूसरों की ( पर भावों की ) ओर देखने से होता है, योगशास्त्र के अनुसार - थोड़े से भी झूठ का कटुफल रौरव आदि नरकगमन है। मृषावाद के कारण जीव आगामी भवों में अनन्तकायिक निगोदों में, तिर्यंचों में तथा नरकावासों में उत्पन्न होता है। इसके सिवाय असत्य से पापकर्मोदय होने पर पागलपन, मूकता, बधिरता, बुद्धिहीनता, मूर्खता, कुष्ट व्याधि आदि दुष्फल प्राप्त होते हैं। असत्य-सेवन से परस्पर अविश्वास, वैर - विरोध, पश्चात्ताप तथा अपमान आदि अनेक अनिष्ट होते हैं। १. (क) चउण्डं खलु भासाणं, परिसंखाय पन्नवं । दुहं तु वियं सिक्खे, दो न भासिज्ज सव्वसो ॥ - दशवैकालिक, अ. ७, गा. २ (ख) सव्वं भंते मुसावायं पच्चक्खामि - से कोहा वा लोहा वा भया वा हासा वा। २. 'पाप की सजा भारी' (मुनि श्री अरुणविजय जी) से भाव ग्रहण, पृ. २८१ - वही, अ. ४
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy