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________________ * ४३२ 8 कर्मविज्ञान : भाग ६ * तुम्हारी अशान्ति और चिन्ताएँ काफूर हो जायेंगी।" आर्थर मान गया। वह दूसरे दिन सूर्योदय से पहले ही भोजन का टिफिन और कुछ जरूरी वस्त्र लेकर समुद्रतट पर पहुँच गया। वहाँ कुछ देर तक बैठा, फिर टहलने लगा। इतने में ही सूर्य का लाल गोला और मनोरम दृश्य दिखाई दिया। वह भावविभोर हो गया। तीन घंटे का समय होते ही उसने एक नंबर की पुड़िया निकाली, खोली। उस पर लिखा थाListen carefully. (ध्यान से सुनो।) इस पर सोचते-सोचते अकस्मात् वहाँ बच्चों के मधुर हास्य और प्रमोद की किलकारियाँ सुनाई दीं। फिर आकाश में पक्षियों का कलरव सुनाई दिया। इन पर सोचते-सोचते बाहर की आवाज को छोड़कर अन्तर में उठने वाली आवाज की ओर ध्यान केन्द्रित किया। उसके प्रसन्न एवं एकाग्र मन में स्फुरणा हुई-“भीतर से तू स्वयं को जान। तू कौन है ? कहाँ से आया है? कैसा है ? आज तक तूने क्या कमाया है ? क्या किया है ?' यो चिन्तन करते ३ घंटे बीत गए। दूसरी पुड़िया खोली। उसमें लिखा था-Try reaching back. (वापस लौटने का प्रयत्न करो।) यह भूतकाल में लौटने का संकेत था। आर्थर का चिन्तन चला“गरीब विधवा माता का पुत्र। चार भाई-बहन। खाने-पीने-पहनने के साधन पर्याप्त नहीं; फिर भी निर्दोष और शान्त जीवन का आनन्द ! उस समय अल्पतम साधनों और गरीबी में आनन्द था, आज धन और प्रचुर साधन होने पर भी सुख-शान्ति नहीं। भगवान का डर रखे बिना धन-प्राप्ति की तृष्णा में भयंकर पाप किये। अतः धन की तृष्णा कम हो तभी सुख-शान्ति हो सकती है।" यों सोचते-सोचते मन शान्त हुआ। ६ घंटे बीतने के बाद तीसरी पुड़िया खोली। उसमें लिखा था-Re-examine your motives. (अपने उद्देश्यों की पुनः जाँच करो।) सोचा-"खाना, पीना और मौज उड़ाना, स्वच्छन्द भोगोपभोग करना ही मेरे जीवन में रहा। धन कमाना और उसके सहारे से यश, प्रतिष्ठा, प्रशंसा और प्रसिद्धि ही मेरे जीवन का चरम उद्देश्य रहा। पर इस विश्व में जितने भी धनकुबेर हुए हैं, किसका नाम रहा है ? उसी का, जिसने अपने भोगों पर प्रतिबन्ध लगाकर परोपकार में तन-मन-धन लगाया है ! मेरे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए था-त्याग करके उपभोग करना।" फिर चौथी पुड़िया खोली। उसमें लिखा था-Write your worries on the sand. (बालू पर तुम्हारी चिन्ताएँ लिखो।) सोचने लगा-“चिन्ताएँ तो अपार हैं ! कितनी लिखी जाएँ ? फिर उँगलियों से रेत पर लिखने लगा। मन हलका हो गया। सन्ध्या होते ही समुद्र में लहरें उठीं। एक बड़ी लहर बालू पर लिखी हुई सभी चिन्ताएँ लेकर समुद्र में विलीन हो गई। स्फरणा हुई-"इसी तरह मेरी चिन्ताएँ भी कालरूपी समुद्र में विलीन होने वाली हैं। मैं व्यर्थ ही दुःखी हो रहा हूँ।” इस तरह प्रकृति की गोद में लेटे-लेटे आर्थर सो गया। चन्द्रमा की शीतल किरणों, ठंडी और मन्द हवाओं के कारण आर्थर को आज ऐसी गाढ़ी नींद आई कि सूर्य की पहली किरण ने जब
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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