SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * धर्म और कर्म का कार्य, स्वभाव और प्रभाव ® २५ 8 धर्माराधना और कर्माराधना करने वाले की विशेषता में अन्तर धर्म करने वाले व्यक्ति में एक विशेषता यह भी है कि वह विपत्ति की घटना से प्रभावित नहीं होता, वह घटना को जान जाता है, किन्तु प्रियता-अप्रियता या हर्ष-शोक का संवेदन प्रायः नहीं करता, प्रायः वह ज्ञाता-द्रष्टा बना रहता है। जो व्यक्ति धर्माराधना नहीं करता है, यानी कर्माराधना करता है, वह घटना सुनते ही मूढ़ बनकर संवेदन करने लग जाता है, वह प्रियता-अप्रियता या हर्ष-शोक के संवेदन से भर जाता है। धर्म की चेतना जैसे-जैसे जाग्रत होती जाती है, वैसे-वैसे इस प्रकार के संवेदन की चेतना कम होती जाती है, शुभाशुभ कर्मफल से वह मन में सुख या दुःख का वेदन नहीं करता। वह तटस्थ व समभाव में स्थित रहता है। धर्म का यही परिणाम या उद्देश्य है, जबकि कर्म विषमभाव में ले जाता है, वह राग-द्वेष की उत्तेजना पैदा करता है, प्रियता-अप्रियता का संवेदन उत्पन्न करता है। यही धर्माराधना और कर्माराधना के उद्देश्य, परिणाम एवं विशेषता में अन्तर है।
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy