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* २४ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ६ *
जुड़े हुए हैं। वर्तमान में जो व्यक्ति धर्माचरण कर रहा है, क्या उसका वह पूर्वकृत अशुभ कर्मों का भण्डार समाप्त हो गया? अतीत उसके साथ तब तक जुड़ा रहता है, जब तक वह सिद्ध-बुद्ध तथा कर्मों से सर्वथा मुक्त न हो जाए। इतना जरूर है कि धार्मिक व्यक्ति के उस अतीत के कर्म के स्टॉक में कमी हो सकती है। परन्तु अतीत के उस कर्म का स्टॉक सर्वथा खाली नहीं हो जाता। प्रत्येक व्यक्ति के साथ अनन्त अतीत का कर्म-भण्डार जुड़ा हुआ रहता है। वह तब तक एकदम समाप्त नहीं होता, जब तक कर्मों से सर्वथा मुक्त न हो जाए। अतः जब तक व्यक्ति पूर्वबद्ध अशुभ कर्मों से अल्प या अधिक अंशों में जुड़ा रहता है, तब तक धर्म करने और न करने वाले के कर्मफल में कोई अन्तर नहीं आता। धर्म करने वाले की दृष्टि में धर्म का उद्देश्य ___ अतः वर्तमान में संवर-निर्जरारूप धर्म करने वालों को यह अवश्य सोचना है . कि हमारे द्वारा वर्तमान में किये जाने वाले धर्माचरण का परिणाम या उद्देश्य अतीत का शोधन करना, अतीत के बन्धन को काटना अथवा वर्तमान कर्मों के आस्रव (आगमन) को रोकना तथा अतीत के अशुभ संस्कारों को बदलना है। अतीत के परिणामों (कर्मफलों) से बचना वर्तमान के धर्माचरण का उद्देश्य नहीं है। यह सम्भव है कि वह अतीत के प्रति जाग्रत होकर सत्ता में पड़े हुए अशुभ कर्मों के अनुभाव (रस) और स्थिति को कम कर दे, शुभ में बदल दे। पूर्वबद्ध अशुभ कर्मों के उदय से भविष्य में होने वाले कर्मोदय के आक्रमण को विफल कर दे या उसके दुःखद फल को समभाव से भोगकर अतीत कर्म का क्षय कर दे। पूर्व अशुभ कर्म का भण्डार जो उसे प्रभावित करता है, उसके विरुद्ध वह ऐसी प्रतिरोधात्मक पंक्ति खड़ी कर देता है, जिससे कर्म के कटुफल का प्रमाद उस पर नहीं पड़ता या हावी नहीं हो पाता। अतः धार्मिक इस तथ्य को विस्मृत करके कभी नहीं कहता कि उसके जीवन में विपत्ति या व्याधि क्यों आई? क्योंकि धर्म या सुध्यान करने वाला भी अतीत के कर्मों से बँधा हुआ है। अतीत में उसने न मालूम कितने-कितने अपराध किये हैं ? किस-किसके जीवन के विकास में रोड़े अटकाए हैं ? अन्तराय दिया है ? अतीत में न जाने कितने अवरोध पैदा किये हैं ? अतः धार्मिक को अतीत के अशुभ कर्मों का परिणाम न भुगतना पड़े, उस पर संकट न आए, ऐसी कल्पना भी नहीं कर सकता वह। विशेषता यह है कि धार्मिक व्यक्ति में उन अशुभ कर्मों का क्षय करने की तथा वर्तमान में आते हुए अशुभ कर्मों को रोकने की एवं अशुभ को शुभ में परिणत करने की शक्ति पैदा हो जाती है।
१. 'अमूर्त चिन्तन' से भावांश ग्रहण, पृ. ७८-७९