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________________ ॐ ४२८ ® कर्मविज्ञान : भाग ६ ® में जहर मिलाकर मार डालते हैं। बंधन स्वीकारने से कितना लाभ है? इसे जानने के लिए कुछ वर्षों पहले की सच्ची घटना प्रस्तुत हैकुत्तों के लिए गलपट्टे का बन्धन सुरक्षारूप बना ___ फ्रांस के रेडियो स्टेशन लकज़मबर्ग में काम करने वाले जेक एंटोइन नामक कर्मचारी को समाचार मिले कि “गलियों में इधर-उधर आवारा भटकते लगभग ४00 कुत्तों को पुलिसमेन पकड़कर ले गए हैं। शाम तक इन सभी कुत्तों को पुलिस गैस-चेम्बर में प्रविष्ट कराकर गैस से बेहोश करके मार डालेगी।" .. यह सुनते ही वह सीधा पुलिस के पास पहुंचा। उसने अर्ज की-“मुझे सिर्फ १२ घंटे के लिए इन कुत्तों को सौंप दो, बाद में आपको जो करना हो सो करना।" पुलिस ने उसकी माँग मंजूर की। ४00 ही कुत्ते उसे सौंप दिये। उसने तत्काल १५-२० मनुष्यों को बुलाकर प्रत्येक कुत्ते के लिए उनसे एक-एक तख्ती लिखाई"तुम मुझे दत्तक ले लो, मैं जिन्दगीभर तुम्हारे प्रति वफादार रहूँगा।" फिर उसने इस प्रकार के लेख वाली तख्ती प्रत्येक कुत्ते के गले में पट्टा डालकर उसमें लटका : दी। साथ ही उसने २०-२५ ट्रक मँगाये। उन ट्रकों में उसने सभी कुत्ते अच्छी तरह खड़े कर दिये। फिर वे ट्रक अलग-अलग गलियों में रवाना किये। साथ ही रेडियो पर उद्घोषणा की “आपके दिल में दया का झरना बहता हो तो आपकी गली में आने वाले ट्रक में बैठे हुए कुत्तों को अपना लीजिए। सिर्फ एक ही घंटे में आप इसका निर्णय कर लीजिए। अन्यथा, देर होने पर ये कुत्ते प्रभु के धाम में पहुँच जाएँगे।" आश्चर्य है कि सिर्फ १५ ही मिनट में प्रत्येक कुत्ते को अपना-अपना घर मिल गया और अपनी जिंदगी की सुरक्षा हो गई।" क्या इतने पर भी कोई कह सकता है कि कुत्तों के गले में बाँधा हुआ पट्टा उनकी गुलामी का सूचक था? कुत्तों के गले में पट्टा उनके लिए रक्षणरूप बना या बन्धनरूप? यही बात जीवन में व्रत-नियम, त्याग-प्रत्याख्यान के विषय में समझ लीजिए; वे बन्धनरूप नहीं, जीवन की सुरक्षा, शान्ति और (कर्म) मुक्ति के लिए वरदानरूप हैं, कर्मबन्ध का निरोध तथा क्षय करने के लिए आवश्यक हैं। खेत के चारों ओर लगाई हुई काँटों की बाड़ अनाज को सुरक्षित रखने के लिए जैसे आवश्यक है, वैसे ही कुनिमित्तों से ब्रह्मचर्यव्रत की सुरक्षा के लिए भगवान द्वारा निर्दिष्ट दशविध ब्रह्मचर्य-गुप्ति या नवविध ब्रह्मचर्य की बाड़ बन्धनरूप नहीं, रक्षणरूप है। जंजीर से बँधा हुआ हाथी तथा करंडिये में डालकर बंद किया हुआ सर्प स्वयं भी सुरक्षित रहता है और दूसरे जीव भी सुरक्षित रहते हैं। इसी प्रकार व्रत-नियमों (विरति-संवर) से. बद्ध जीवन भी कुविचारों, कदाचारों और कदाग्रहों तथा दुर्व्यसनों से एवं अत्यधिक सुविधाओं-सुखोपभोगों से होने वाली जीवन की हानि से बचाता है। स्पष्ट है
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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