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________________ ॐ ४२२ ® कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ सुविधावाद का दुष्परिणाम प्राचीनकाल में यंत्रवाद का इतना विकास नहीं हुआ था, तब बहनें पानी भरने के लिए कुएँ या नदी पर जाती थीं, उससे श्रम भी होता था, सहन-शक्ति भी बढ़ती थी, पानी का उपयोग भी नाप-तौलकर किया जाता था। परन्तु इस सुविधावाद के. युग में घर-घर नल लग जाने से प्रचुर पानी बिना ही परिश्रम के उपलब्ध हो जाता है। घर का सब कार्य तब महिलाएँ अपने हाथ से ही करती थीं; सफाई, गो-सेवा, रसोई, पानी छानना, बर्तन मांजना आदि गृहकार्यों को वह विवेक और यतनापूर्वक करती थीं, इससे श्रमजन्यशरीर शक्ति, जीवरक्षा, सहन-शक्ति और स्वावलम्बिता ये चारों ही लाभ थे, परन्तु सुविधावादी मनोवृत्ति ने केवल शारीरिक सहन-शक्ति ही नहीं, शारीरिक-मानसिक शक्ति को भी चौपट कर दिया है। सुविधावादी व्यक्ति को यह चिन्ता भी नहीं होती कि इस पराधीनता से मेरा स्वास्थ्य खराब हो जायेगा, डायबिटीज, अजीर्ण, गैस, कब्ज आदि अनेक भयंकर उदर रोग लग जायेंगे। उसके पश्चात् चिकित्सकों के द्वार खटखटायेंगे। उनके कहने से बरबस ही उन्हें भले ही मिठाई, खटाई, मिर्च, तली हुई वस्तुएँ, मीठे पेय पदार्थ छोड़ने पड़ें, तब . मजबूरी से ही छोड़ेगा, वह संवर की कोटि में नहीं है। परन्तु सम्यग्दृष्टिपूर्वक स्वेच्छा से पहले ही अमुक-अमुक पदार्थों के उपभोग-परिभोग की मर्यादा कर लेता तो उसका जीवन संयम और संतोष से सुख-शान्ति और स्वस्थता से व्यतीत होता। खाद्य पदार्थों के अत्यधिक और स्वच्छन्द उपभोग से उसकी वृत्ति कलुषित हुई, अनेक रोगों से जनित दुःख उत्पन्न हुए, मानसिक शान्ति और स्वस्थता भंग हुई, फिर चिकित्सक और दवाइयों के चक्कर में पड़कर आर्थिक दृष्टि से भी परेशान हुआ। यह हुआ अविरति का दुष्परिणाम ! सुविधावादी लोगों का पदार्थों के स्वच्छन्द उपभोग विषयक तर्क __ सुविधावादी लोगों से कहा जाए कि “आप लोग वस्तुओं के अनियंत्रित उपभोग के कारण इतना अधिक कष्ट उठाते हैं, यदि थोड़ा-सा दृष्टिकोण बदलकर तथा मन को समझाकर अपने पर थोड़ा-सा संयम रखने तथा स्वेच्छा से नियमन करने का अभ्यास कर लें तो आपको इतना कष्ट भी न उठाना पड़े और अपने मनोनीत और आवश्यकतानुसार वस्तु न मिलने पर भी मन में किसी प्रकार की ग्लानि न हो, संतोष और सादगी का आनन्द आ जाए। आप तन और मन से भी स्वस्थ और शान्त रहें।" तो वे तपाक से कहने लगते हैं-“ये सब वस्तुएँ हैं किसलिए? मनुष्य के उपभोग के लिए ही तो हैं ! हम इनका यथेष्ट उपभोग नहीं करेंगे तो ये पड़ी-पड़ी सड़ जायेंगी। जब हम इन साधनों का उपभोग कर सकते हैं अथवा ये साधन हमें उपलब्ध हैं तो क्यों हम अभाव का जीवन जीकर दुःख उठाएँ?"
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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