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________________ ॐ विरति-संवर : क्यों, क्या और कैसे? * ४२१ 8 इन्द्रियादिजन्य) भावों के अधीन जो विषयसुखभोग दुःखरूप हैं, उन्हें सुखभोगवादी सुखरूप मान लेता है।" भौतिकवाद द्वारा सुविधावाद को अत्यधिक उत्तेजन भौतिकविज्ञान से मनुष्य के इस सुविधावाद को और अधिक उत्तेजन और प्रोत्साहन मिला है। जैसे-जैसे भोग की सामग्री का विकास हुआ, मनुष्य की मनोवृत्ति भोगवादी बनती गई। इतना ही नहीं, वह इन्द्रियों और मन पर किसी प्रकार की लगाम लगाना पसंद न करके अनियंत्रित = स्वच्छन्द भोगवादी बनता गया। उसे भूख लगी है, सामान्य सादे सात्विक आहार से उसकी तृप्ति हो सकती है, मगर वह अपनी स्वच्छन्द मनोवृत्ति के अनुसार, भोजन को मिर्च-मसाले तथा मिष्ट पदार्थों से उसे गरिष्ठ अथवा स्वादिष्ट बनाकर, उसका उपभोग करेगा, तृप्ति होने पर भी स्वाद के लोभ में पड़कर अधिकाधिक मात्रा में उसका उपभोग करेगा। उस तथाकथित स्वादिष्ट पदार्थ के उपभोग से तथा अत्यधिक मात्रा में उपभोग से भले ही अजीर्ण, कब्ज, अम्लपित्त, गैस आदि रोगों का शिकार हो जाए। मान लो, वह निर्जन वन में जा रहा है, वहाँ उसे भूख और प्यास लगी है। उसके पास या आसपास कहीं भूख-प्यास मिटाने का कोई साधन दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति में सुविधावादी या निरंकुश भोगवादी मनोवृत्ति वाला मानव व्याकुल हो जायेगा, आर्तध्यान करने लगेगा; क्योंकि इस पराधीन या पर-पदार्थाधीन मनोवृत्ति ने उसकी सहन-शक्ति ही समाप्तप्राय कर डाली है। उसकी समभावपूर्वक सहन करने की प्राकृतिक क्षमता भी प्रायः नष्ट हो गई है। सुविधाओं को भोगते-भोगते वह पर-पदार्थों के वशवर्ती हो गया है। इस कारण अपने पर जरा भी अंकुश या नियंत्रण नहीं रख सकता। गर्मी लग रही है तो सुविधावादी तुरन्त पंखा खोल लेता है अथया कूलर लगाकर एयरकंडीशन रूम में बैठता है। सर्दी लग रही है तो तुरन्त हीटर लगा लेता है। अगर वातानुकूलित स्थान सहज प्राप्त न हो तो वह छटपटा उठता है, जैसे-तैसे उसे जुटाने की वृत्ति जागती है अथवा सर्दी लगने पर सुविधावादी व्यक्ति अधिक गर्म कपड़े और गर्मी लगने पर अत्यन्त बारीक कपड़े तथा समाज में अपनी प्रतिष्ठा और प्रशंसा के लिए सभ्यता के नाम पर वह सादे कपड़ों के बजाय बहुत ही कीमती, मुलायम और ऊँचे दर्जे के कपड़े से शरीर को ढकने का प्रयास करेगा। इसी प्रकार कहीं थोड़ी-सी दूर जाना हो तो वह साइकिल, स्कूटर, मोटरसाइकिल का सहारा लेता है, दो-चार मील जाना हो या दूर जाना हो तो पैदल जाने के बदले कार, बस, ट्रेन, वायुयान आदि की सवारी खोजता है।
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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