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8 ३९२ 8 कर्मविज्ञान : भाग ६ *
कैसे तोड़ा जायेगा? इस प्रकार का निश्चय-सम्यग्दर्शन होने पर ही आत्मा की शुद्धता और अमरता का ज्ञान परिपक्व हो सकेगा। इसलिए आत्मा पर श्रद्धा करना, उसकी अनुभूति, प्रतीति, विनिश्चिति या उपलब्धि करना जो निश्चय-सम्यग्दर्शन है, वही व्यवहार-सम्यग्दर्शन का मूल आधार है, क्योंकि तत्त्वों, पदार्थों या देव, गुरु, धर्म, शास्त्र आदि के प्रति श्रद्धान का लक्ष्य आत्म-श्रद्धान ही है। व्यवहार-सम्यग्दर्शन के दो प्रसिद्ध लक्षण और उनका स्वरूप
व्यवहार-सम्यग्दर्शन के मुख्यतया दो लक्षण प्रसिद्ध हैं-(१) जीवादि नौ या. सात तत्त्वों पर सम्यक् श्रद्धान, और (२) देव, गुरु और धर्म पर दृढ़ श्रद्धा। .. इस सम्बन्ध में निम्नोक्त गाथा प्रसिद्ध है
“अरिहंतो मह देवो, जावज्जीवाय सुसाहूणो गुरुणो।
जिणपण्णत्तं तत्तं, इअ सम्मत्तं मए गहीयं॥ -अरिहंत मेरे देव हैं, यावज्जीव तक सुसाधु मेरे गुरु हैं और जिन (वीतराग) भगवान द्वारा प्रज्ञप्त नौ तत्त्व सम्यक् हैं, इस प्रकार मैंने सम्यक्त्व ग्रहण किया।
'सूत्र प्राभृत' में कहा है-“जिनेन्द्र भगवान ने जीव-अजीव आदि बहुविध पदार्थ सुतथ्य बताये हैं, उनमें से जो हेय हैं, उन्हें हेयरूप में और उपादेय को उपादेयरूप में जानता-मानता है, वही सम्यग्दृष्टि है।"२ तत्त्वभूत पदार्थों पर श्रद्धान : कुछ शंका-समाधान .
व्यवहार-सम्यक्त्व का प्रथम लक्षण किया गया है-तत्त्वभूत पदार्थों पर श्रद्धान। किन्तु प्रश्न उठता है कि तत्त्वभूत पदार्थ किसे और क्यों कहा जाये? क्योंकि जिसके लिए जो पदार्थ इष्ट है या जिसके प्रति जिसकी श्रद्धा या रुचि है, उसके लिए वही तत्त्वभूत पदार्थ हो जायेगा। जैसे धनलोभी धन को, कामवासना लोभी कामभोग को, राज्यलोभी राज्य को तत्त्वभूत पदार्थ मान सकता है अथवा जो अल्पज्ञ है, मन्दबुद्धि है, मिथ्यात्वग्रस्त है, वह भ्रान्तिवश अतत्त्व को भी तत्त्वभूत पदार्थ जान-मान सकता है और इसका भी क्या प्रमाण है कि आगमों, शास्त्रों या ग्रन्थों में बताये गये ये सात या नौ पदार्थ ही तत्त्व हैं, अन्य पदार्थ तत्त्वभूत नहीं हैं ?
इसका समाधान यह है कि व्यवहार-सम्यक्त्व के दिगम्बर-श्वेताम्बर परम्परा के प्रायः सभी लक्षणों में तत्त्व शब्द से पूर्व एक महत्त्वपूर्ण विशेषण का प्रयोग
१. आवश्यकसूत्र मूल/सम्यक्त्व पाठ २. सुतत्थं जिणभणियं जीवाजीवादि बहुविहं अत्थं।
हेयाहेयं च तहा जो जाणइ, सो हु सुद्दिट्ठी॥ ।
-सूत्रपाहुड, गा. ५