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8 २० 8 कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ
धर्म करने और न करने वाले दोनों पर भी कष्ट आता है ___ कष्ट या संकट तो धर्म करने वाले पर भी आता है और न करने वाले पर भी आता है। सामान्य धर्माचरणकर्ता की बात तो क्या, विशिष्ट धार्मिक, धर्मगुरु तथा धर्मावतार कहलाने वाले भी कष्ट से बच नहीं पाते। धर्म-परायण को भी शरीर का कष्ट तो भोगना पड़ता है। सामाजिक एवं राष्ट्रीय सेवा करने वालों को भी शारीरिक एवं मानसिक कष्ट, रोग आदि के दुःख भोगने पड़ते हैं। कारण यह है कि धर्म करने वाला अभी वीतराग नहीं बना है। वीतराग के सिवाय प्रत्येक छद्मस्थ धार्मिक राग-द्वेष से मुक्त नहीं है। उसमें राग-द्वेष या प्रियता-अप्रियता या मनोज्ञता-अमनोज्ञता का भाव उसमें पहले भी था, अब भी है और वीतराग नहीं बनेगा, तब तक ये भाव रहेंगे। राग-द्वेषादि या कषायादि की धारा धार्मिकअधार्मिक दोनों में है। धार्मिक के मन्द है, अधार्मिक में तेज है। ऐसी स्थिति में यह कह देना कि धार्मिक में बीमारी, विपत्ति, दरिद्रता, अभाव-पीड़ा आदि कष्ट क्यों भोगना पड़ता है ? मूल बात पूर्वकृत कर्म के विपाक की है। यहाँ वर्तमान में धर्म करना, न करना कोई महत्त्वपूर्ण नहीं है। धार्मिक-अधार्मिक दोनों दुःखों से . ग्रस्त होते हैं। धार्मिक और अधार्मिक के कष्ट भोगने में अन्तर
इस पर स्थूलदृष्टि वाले लोग यह प्रश्न उठाते हैं कि जब धार्मिक और अधार्मिक दोनों ही कष्ट भोगते हैं, तब दोनों में अन्तर क्या रहा? और यह भी है कि जब दोनों स्थितियों में दुःख भोगना है यानी पूर्वकृत अशुभ कर्मोदय के फलस्वरूप दुःख उठाना है, तो फिर धर्म क्यों किया जाए? धर्माचरण-संवरनिर्जरारूप या रत्नत्रयरूप धर्म का पालन करने से क्या लाभ है ?
यह सत्य है कि धर्म-पालन करने वाले पर भी दुःख आता है, परन्तु यह भी सत्य है कि धर्म-पालन करने वाला दुःख, कष्ट, विपत्ति या रोग आदि आने पर रोता नहीं, विलाप नहीं करता, दीन-हीन नहीं बनता, अपना मानसिक सन्तुलन नहीं खोता, परिस्थितियों के आगे घुटने नहीं टेकता, वरन् आने वाले कष्टों और संकटों को सहर्ष सह लेता है। हँसते-हँसते प्रसन्नता, धैर्य और शान्ति से कष्टों को झेल लेता है। इसके विपरीत जिस व्यक्ति में धर्म-पालन का उत्साह नहीं होता, जिसने अध्यात्म-साधना का क-ख-ग नहीं सीखा, जिसमें धर्मचेतना नहीं होती, वह जरा-सा कष्ट, संकट या विपत्ति आने पर दीन-हीन बन जाता है, परिस्थिति के आगे घुटने टेक देता है। कष्टों के आने का नाम सुनते ही वह काँप उठता है, अपना सन्तुलन खो देता है, कष्टों को वह सहन नहीं कर पाता। धर्म-पालन करने वाले व्यक्ति की एक विशेषता यह भी होती है कि वह चाहे सुखद स्थिति में हो,