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परीषह-विजय : उपयोगिता, स्वरूप और उपाय ® ३६१ 8
सरकार द्वारा काले कानून लागू कर दिये थे। इस पर गांधी जी ने उन्हें समझाया
और कहा कि "ये काले कानून रद्द नहीं करेंगे तो हम आपके हृदय को अपील करने के लिए सत्याग्रह करेंगे।" गांधी जी वहाँ के सभी भारतीय लोगों के नेता थे। भारतीयों के संगठन के सामने गांधी जी ने जनरल स्मट्स के साथ हुई बात रखी। इस पर सभी उपस्थित भारतीय सत्याग्रह के लिए स्वीकृत और उद्यत हो गए। परन्तु दूसरे ही दिन जनरल स्मट्स ने गांधी जी को बुलाकर उनकी बात मान ली। अतः सत्याग्रह स्थगित रखा गया। मगर कई भारतीय उत्तेजित होकर गांधी जी को भला-बुरा कहने लगे-"आपने ही सत्याग्रह के लिए हमें कहा था, आप ही अब इन्कार कैसे कर रहे हैं ?" गांधी जी द्वारा प्रेम से उन्हें सत्य-तथ्य समझाने पर भी वे नहीं समझे। आलमगिर नामक एक भारतीय पठान तो इतना उत्तेजित हो गया कि “गांधी जी को मैं मार-पीटकर सीधा करूँगा।" परन्तु गांधी जी इससे उत्तेजित नहीं हुए। दूसरे दिन गांधी जी जब कहीं जा रहे थे तो आलमगिर पठान ने उन्हें धक्का दिया और नीचे गिराकर पीटा। किन्तु गांधी जी ने उस पर जरा भी रोष न किया और न ही उसे अपशब्द कहे। एक अंग्रेज मित्र ने गांधी जी से कहा-“आप इस पठान पर मुकद्दमा चलाइए। मैं इस घटना की साक्षी दूंगा।" परन्तु गांधी जी ने कहा-“मुझे ऐसा बिलकुल नहीं करना है। इसने अज्ञानतावश मुझे मारा-पीटा है। जब यह सत्य समझेगा तो अवश्य ही पश्चात्ताप करेगा। मैं अपने किसी भी भाई पर मुकद्दमा नहीं चलाऊँगा।" जब आलमगिर को सच्ची बात समझ में आई तो वह आँखों से अश्रुपात करता हुआ गांधी जी के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगा। यह था कष्ट-सहिष्णुता का विलक्षण प्रभाव !
परीषह-विजय के लिए क्षमा अमोघ साधन परीषह-विजय के लिए क्षमा अमोघ साधन है। क्षमा का लक्षण है-"सत्यपि सामर्थ्ये अपकारसहनं क्षमा।"-अपने में प्रतिकार का सामर्थ्य होते हुए भी प्रतिकार न करके उसके क्षणिक अपकार को, अपने कर्मक्षय के लिए प्रदत्त का अवसर रूप उपकार मानकर सहना क्षमा है। ऐसा होने पर संवर और निर्जरा की साधना फलित होती है। कभी-कभी तो अर्जुन मुनि की तरह कष्ट-सहिष्णुता के अमोघ साधन रूप क्षमा से पूर्वबद्ध कर्म शीघ्र ही कट जाते हैं। अतः जो साधक परीषहविजय के प्राप्त अवसरों को सच्चा साधक चूकता नहीं है, वह संवर और निर्जरा का लाभ अनायास ही पा लेता है।