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________________ ॐ ३४६ 8 कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ के अभ्यास से संवर-निर्जरा का साधक शारीरिक और मानसिक कष्टों को सहन करने में इतना अभ्यस्त एवं समर्थ हो जाए कि बड़े से बड़े कष्टों को भी संहने में उसे आनन्द आए, उसके स्नायु और माँसपेशियाँ विविध प्रकार के आसनों और व्यायामों से इतने अभ्यस्त हो जाएँ कि किसी भी कष्ट और दुःख की प्रतिक्रिया किये बिना, उससे भयभीत हुए बिना, धैर्यपूर्वक वह अपनी धर्म-साधना में दृढ़ रहे, जरा भी विचलित न हो। कायक्लेश में मृदुता और कठोरता दोनों हैं श्रमण भगवान महावीर ने श्रमणों और श्रमणोपासकों की साधना में मृदुता और कठोरता दोनों का सामंजस्य प्रारम्भ से ही किया है। मुनि-जीवन में कायक्लेश का एकान्तरूप से निषेध नहीं है। किन्तु अज्ञानपूर्वक निरुद्देश्य कायक्लेश (कष्ट-सहन) का उन्होंने प्रतिवाद करते हुए कहा है-“अज्ञानी जिन कर्मों को करोड़ों वर्षों के कायक्लेश से क्षीण करता है, ज्ञानी एक श्वासोच्छ्वास मात्र में उन्हें क्षय कर डालता है।" इसके साथ ही एक तथ्य और समझ लेना चाहिए कि जितना महत्त्व क्षमादि दशविध उत्तम धर्मों का, समिति-गुप्ति एवं महाव्रतों-अणुव्रतों के पालन का एवं अनुप्रेक्षा का है, उतना कायक्लेश का नहीं है। 'निशीथभाष्य' में कहा गया है-“हम साधक के केवल अनशन आदि से कृश हुए शरीर के प्रशंसक नहीं हैं। वास्तव में इन्द्रिय (वासना), कषाय और अहंकार को कृश करना चाहिए।" ये साधनाएँ सीधे (Direct) काया को कष्ट देने के लिए नहीं हैं। किन्तु कदाचित उन क्षमा आदि या अहिंसादि साधना करते समय क्वचित् कायक्लेश प्राप्त हो सकता है, मगर वह कायकष्ट उपर्युक्त साधनाओं की सिद्धि का मुख्य साधन नहीं है। इन साधनाओं के द्वारा कायकि, वाचिक और मानसिक संवर तथा निर्जरा ही मुख्यतया सिद्ध होती है। कर्मनिरोधात्मक एवं कार्मक्षयात्मक साधना के मुख्य अंग दो हैं-संवर और तपश्चरणात्मक निर्जरा। संवर के मुख्यतया पाँच प्रकार हैं-सम्यक्त्व, विरति, अप्रमाद, अकषाय और अयोग। संवर की साधना कर्मनिरोधात्मक होने से प्रायः कठोर कायक्लेशात्मक न होकर मृदु है। -प्रवचनसार ३/३ १. जं अन्नाणी कम्मं खवेइ, बहुयाहिं वासकोडीहिं। तं नाणी तिहिं गुत्तो खवेइ उसासमित्तेण॥ २. इंदियाणि कसाये य, गारवे य किसे कुरु। णो वयं ते पसंसामो, किसं साहु सरीरगं॥ -नि. भा. ३७५
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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