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________________ ® ३४२ कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ पड़ता है। जिसकी प्राण-शक्ति क्षीण हो जाती है, वह व्यक्ति कष्ट सहने की अक्षमता के कारण बार-बार निराश हो जाता है, घबरा जाता है, हीनभावना का शिकार हो जाता है, उसमें अधृति का निवास हो जाता है, वह व्यक्ति आत्म-विश्वास खो बैठता है, वह समस्याओं का सामना करने में अक्षय होने के कारण कभी-कभी आत्महत्या भी कर बैठता है। प्रतिकूल परिस्थितियों से घबराकर वह मृत्यु का वरण करने की बात सोच लेता है। बात-बात में अधीर हो जाता है। सामान्य-सी प्रतिकूलता उसे अधीर बना देती है। इस प्रकार वह शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के दुःखों को सहन करने में असमर्थ हो जाता है।। असहिष्णुता अशान्ति एवं कर्मबन्ध का कारण है ___ असहिष्णुता का पर्यवसान अहंकार में होता है। कई बार असहिष्णु व्यक्ति के व्यवहार से दुःखी होकर लोग उससे बदला लेने की योजना बनाते हैं। असहिष्णुताजन्य प्रतिक्रिया से उद्वेग और सन्ताप बढ़ता है और विद्वेष की कष्टकारक एवं हानिमूलक परम्परा बढ़ने लगती है। किसी अन्य के भिन्न विचारव्यवहार को न सहने की मनःस्थिति रहती है तो उसके मन को प्रति क्षण क्लेश, कटुता और अशान्ति ही वेधती रहती है। संतुलित मनःस्थिति बनाये रखने के लिए सहिष्णुता आवश्यक व्यावहारिक जीवन में सर्वदा बिलकुल भले आदमियों से ही वास्ता पड़ना या सदा अनुकूलताएँ ही प्राप्त होना सम्भव नहीं है। क्रोधी, विक्षुब्ध, कलहकारी, झगड़ालू या दुष्ट प्रकृति के व्यक्तियों से बचने का कितना ही प्रयत्न किया जाए, परन्तु उनसे अक्सर प्रतिदिन ही सम्पर्क आता है। कई सत्ता प्राप्त, अधिकार-प्राप्त या. धन-सम्पन्न, प्रतिष्ठा-प्राप्त भी इसी निकृष्ट प्रकति के होते हैं। यदि उनके दुर्वचनों और दुर्व्यवहारों के प्रति असहिष्णु होकर उनसे संघर्ष किया जाए, जैसे को तैसा के रूप में बदला लिया जाए तो खुद की मानसिक शान्ति भंग होती है, वैर और विरोध के कारण कर्मबन्ध हो जाने पर पता नहीं कितने जन्मों में जाकर उसका भुगतान हो। अशान्त और उद्विग्न मनःस्थिति के चलते कोई भी मनोनीत सत्कार्य भलीभाँति सम्पन्न नहीं हो सकता। शान्त और सन्तुलित मनःस्थिति में ही व्यक्ति कार्य करने तथा भलीभाँति सोचने-समझने और यथार्थ निर्णय लेने में सक्षम होता है। ऐसी मनःस्थिति बनाये रखने के लिए सहिष्णुता नितान्त आवश्यक होती है। ___ असहिष्णुता से मनःस्थिति अशान्त और उद्विग्न हो जाती है। सारा शरीर काँपने लगता है। क्रोध और आवेश से व्यक्ति भड़क उठता है। ऐसी स्थिति में कुछ अनहोनी भी घटित हो सकती है। अतः क्रोधादि के आवेगों से बचने के लिए
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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