SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 361
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * परीषह - विजय : उपयोगिता, स्वरूप और उपाय ३४१ अशक्त होकर आत्महत्या करने जा रहा था। परन्तु मेरे एक हितैषी मित्र ने मुझे सुख-सुविधावाद को छोड़कर श्रमनिष्ठापूर्वक वन में रहकर प्रकृति की गोद में जीने के लिए प्रेरित किया। मैंने वैसा ही किया । फलतः मुझे सच्चा आनन्द मिला। मेरे तन-मन स्फूर्तिदायक एवं तेजस्वी बन गए। सेन्फोर्ड बेनिट तो अपने मित्र की प्रेरणा से सँभल गए। परन्तु जो व्यक्ति सिर्फ ऐश-आराम का या सुख-सुविधावादी जीवन जीते हैं, वे लोग जरा-सा कष्ट आने पर हायतोबा मचाने लगते हैं । जो व्यक्ति आरामतलब होता है या सुख-सुविधावादी जीवन जीता है, वह तन-मन से दुर्बल होकर रोते-रोते जीवन जीता है । वह जीवन में आने वाली समस्याओं और दुःखों का सामना नहीं कर पाता । कभी-कभी तो वह अकाल में ही मरण-शरण हो जाता है। जो विद्यार्थी कष्ट सहन करने में सक्षम नहीं है, वह परीक्षा में अनुत्तीर्ण होने पर अधृति का शिकार होकर आत्महत्या कर लेता है। ऐसे ही कई व्यक्ति जो कष्ट-सहिष्णु नहीं होते, वे कर्जदार होने पर, साहूकार से लिया हुआ कर्ज समय पर नहीं चुका पाने के कारण अज्ञानतावश प्राणान्त कर लेते हैं। इन सबके पीछे मुख्य कारण है - या तो वह कष्ट सहना नहीं चाहता अथवा कष्ट सहने में अक्षम है। बाह्य और कृत्रिम साधनों से जीवन क्षणिक सुखी बनता है कई व्यक्ति यह कहते हैं कि हम बाह्य साधनों का प्रयोग करके भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी आदि शारीरिक कष्टों को तथा मनोऽनुकूल औषध, रसायन आदि का सेवन करके शरीर की क्षमता को बढ़ाकर इन कष्टों को झेल लेते हैं। परन्तु याद रखिये- बाह्य साधनों या कृत्रिम साधनों के सहारे जीने वाले और कष्टों के कम हो जाने की भ्रान्ति में रहने वाले लोगों की सहन करने की शक्ति अत्यन्त कम हो जाती है। उसकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो जाती है, जिससे अकारण ही हृदयरोग, रक्तचाप, मधुमेह, सन्धिवात, क्षयरोग आदि बीमारियाँ उन्हें घेर लेती हैं। कष्टों को सहन न करने वाले की प्राण-‍ -शक्ति क्षीण अतः स्वेच्छा से समभावपूर्वक कष्टों को सहन न करने वाले व्यक्ति की प्राण-शक्ति क्षीण हो जाती है । वह हीनभावना का शिकार हो जाता है। उसका मनोबल कमजोर हो जाने से मानसिक कष्टों का भी सामना करना पड़ता है। कभी-कभी अत्यधिक मानसिक कष्ट, चिन्ता और शोक के कारण उसका हार्टफेल भी हो जाता है। भारतीय जनजीवन में धनिक या सत्ताधीश व्यक्ति में यह भ्रान्ति घुस गई है कि हाथ से श्रम करने से, कष्ट सहने से पोजीशन (प्रतिष्ठा ) डाउन हो जाएगी। परन्तु इस भ्रान्ति के शिकार व्यक्तियों को हर काम में परमुखापेक्षी होना
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy