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________________ * ३४० 8 कर्मविज्ञान : भाग ६ * कि आते हुए सर्दी, गर्मी, दंश-मशक, भूख-प्यास आदि कष्टों से न घबराकर उनका . सामना करना और उन पर विजय पाना। सुख-सुविधावादी का उभयलोक दुःखकर __वर्तमान युग के अधिकांश मानव सुख-सुविधा चाहते हैं। उनका कहना है कि मानव-शरीर मिला है तो इस शरीर से जितना भी सुख मिले, उसका उपभोग कर लो। सुख से खाओ, पीओ और मौज करो। इस युग का दृष्टिकोण ही बन गया सुख-सुविधावाद। सुख-सुविधावाद के चक्कर में पड़कर मानव वर्तमान में व्यावहारिक दृष्टि से दुःख और कष्ट को न्यौता देता है और पारमार्थिक दृष्टि सेआध्यात्मिक दृष्टि से भी जरा-से कष्ट को समभावपूर्वक सहन करने की क्षमता के नष्ट हो जाने से भविष्य में बार-बार भवभ्रमणजनक दुःखों को (अशुभ कर्मफलों को) आमंत्रण देता है। सुख-सुविधावाद में अहर्निश रत रहने वाले लोगों का जीवन इस लोक में भी कष्टकर बन जाता है और परलोक का जीवन तो और अधिक कष्टमय बनता है। जो मनुष्य-जीवन, मानव-शरीर उसे जन्म-मरणादि दुःखों कोदुःखोत्पादक कर्मों को नष्ट करने के लिए मिला था, उसे वह यों ही सुख-सुविधा का आस्वाद लेकर बिता देता है। अपनी सहन करने की शक्ति को कमजोर बना देता है। उसकी धृति, मनोबल, तनबल, आन्तरिक आनन्द, आत्म-शक्ति आदि सब चौपट हो जाते हैं। वह अनेक शारीरिक, मानसिक रोगों का शिकार होकर अधिक कष्ट और दुःख में जीता है और उसकी मृत्यु भी शरीर और शरीर से सम्बद्ध सजीव-निर्जीव वस्तुओं और व्यक्तियों पर मोह व आसक्ति के कारण भयंकर विषाद में होती है। जिससे भावी जीवन भी उसे दुःखों और कष्टों से परिपूर्ण मिलता है। स्वैच्छिक कष्ट-सहन : सुखद जीवन का नुस्खा _ 'सेन्फोर्ड बेनिट'' नामक एक अमेरिकन धनाढ्य व्यक्ति ने एक पुस्तक लिखी है-'ओल्डएज : इट्स कॉज एण्ड प्रिवेन्शन' (बुढ़ापा : इसका कारण और निवारण)। उसमें उसने आपबीती राम कहानी लिखी है। जिसका सारांश यह हैमैंने प्रत्येक इन्द्रिय के सुखभोगों का आस्वाद लिया। कूलर, हीटर, रेफ्रिजरेटर, वातानुकूलित भवन, प्रत्येक कार्य के लिए यंत्र का उपयोग, मनमोहक सुन्दरियों के साथ कामसुख का उपभोग आदि हर प्रकार के सुख-सुविधा के कृत्रिम उपायों और साधनों का आश्रय लिया। नतीजा यह हुआ कि मैं पैंतीस वर्ष की उम्र में ही ७०-८0 वर्ष के बूढ़े जैसा दिखने लगा। चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ गईं। गाल अंदर बैठ गये। आँखें अंदर धंस मईं। इन्द्रियों की शक्ति क्षीण हो गई। मैं जीवन से निराश, १. 'Oldage : Its Cause and Prevention' (By Senford Benitt) से संक्षिप्त
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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