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ॐ परीषह-विजय : उपयोगिता, स्वरूप और उपाय 8 ३४३ *
सहिष्णुता अत्यावश्यक है। प्रतिकूल परिस्थिति एवं व्यक्ति के प्रति असहिष्णु वने रहने पर चित्र विचलित होता है, सजीव-
निर्जीव निमित्तों के प्रति आवेग-उद्वेग उठते हैं। इससे कार्यसिद्धि में कठिनाई उत्पन्न होती है। इसलिए प्रतिकूलताओं के बीच भी मानसिक सन्तुलन बनाये रखना चाहिए। उसके लिए सहिष्णुता महत्त्वपूर्ण साधन है। सुसंस्कृत व्यक्ति सदा सहिष्णु और निर्भय होता है, क्योंकि वह जानता है कि विश्व-व्यवस्था ऐसी ही है कि यहाँ अनुकूलताओं के साथ प्रतिकूलताएँ, भले लोगों के साथ बुरे लोगों एवं पुष्पों के साथ काँटों का भी अस्तित्व है। उनसे हम बचकर नहीं रह सकते। बुरे व्यक्ति में भी अच्छाई के अंश रहते हैं। सहिष्णु व्यक्ति ही संयत ढंग से स्नेहपूर्वक उनकी बुराइयों को एकान्त में समझा-बुझाकर और आवश्यक असहयोग करके उन्हें दूर कर सकता है। असहिष्णुता तब पैदा होती है, जब व्यक्ति अहंकारवश अपनी ही विचारधारा तथा अपने ही मत, पंथ, सम्प्रदाय या दृष्टिकोण को सही मानने और दूसरों के मत, पंथ, सम्प्रदाय, विचारधारा एवं दृष्टिकोण निकृष्ट या सर्वथा गलत मानने की क्षुद्रता या मूढ़ता अथवा हठाग्रहिता करता है। इससे सामाजिक विद्वेष एवं घृणा की भावना तथा अपनी श्रेष्ठता का दम्भ पैदा होता है। दूसरे का विचार व्यवहारहीन कोटि का लगने से उसे मिटा देने की हिंसा की भावना पनपती है। यह सब संकीर्ण एवं क्षुद्र अहं के सिवाय और . कुछ नहीं है।
कष्ट-सहिष्णुता ही श्रेयस्कर मार्ग मानव-जीवन में सभी प्रकार के अवसर उपस्थित होते हैं। कभी प्रशस्त राजमार्ग मिलता है, सीधी पगडंडी भी मिलती है, तो कभी ऊबड़-खाबड़ विकट रास्ता भी मिलता है। सभी जगह फूल ही फूल मिलें ऐसा नहीं होता, अधिकतर काँटे ही मिलते हैं। नदी-नाले भी मिलते हैं, चट्टानें भी, जो रास्ता रोके खड़ी रहती हैं। इन सब में होकर आगे बढ़ते जाने का एक ही उपाय है-कष्ट-कण्टकों को
धैर्यपूर्वक सहन करना। __जीवन के किसी भी क्षेत्र में बना-बनाया निष्कंटक मार्ग किसी को कभी नहीं मिला, न ही मिलता है। जिन्हें हम महापुरुष मानते या कहते हैं, उन्हें भी अपने जीवन में निष्कंटक मार्ग नहीं मिला। किसी के जीवन में कोई बाधाएँ थीं, किसी के जीवन में विकसित एवं सुसंस्कृत समाज नहीं था। किसी के जीवन में अभाव की पीड़ा थी, तो किसी के जीवन में भोगों का अम्बार लगा होने से उस जाल से निकलकर कर्ममुक्ति के आग्नेय पथ पर आना बहुत दुष्कर था। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में काम करते समय विघ्न-बाधाएँ, प्रतिकूलताएँ, अनिष्टसंयोग, विपरीत परिस्थितियाँ आया ही करती हैं। विघ्न-बाधाएँ, प्रतिकूलताएँ या विपरीत