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ॐ १६ * कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ
उसे पाल-पोसकर बड़ा किया। वयस्क होने पर उसका विवाह किया। किन्तु विवाह को बारह वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी उसके कोई पुत्र नहीं हुआ। उसे बड़ी चिन्ता हुई। धर्म पर से उसकी आस्था डगमगा गई। उसने अब सन्तदर्शन तथा विविध धर्मक्रियाएँ करना छोड़ दिया। कई साथी महिलाएँ उसे प्रेरणा करतीं तो वह उन्हें मुँहतोड़ जवाब दे देती-“तुम्ही करो धर्म ! जो धर्म एक पोता भी नहीं दे सकता, उस धर्म को करके मैं क्या करूँ? मुझे तो लगता है, धर्म का पालन करना व्यर्थ समय खोना है।" अब समवयस्क महिलाओं ने भी उस बुढ़िया को धर्माचरण के लिए कुछ भी कहना छोड़ दिया। __एक बार उस गाँव में एक वृद्ध और अनुभवी संत पधारे। उन्होंने धर्मस्थान में अन्य महिलाओं के साथ उक्त वृद्धा को नहीं देखा तो बहनों से पूछा-“आजकल वह माताजी नहीं आतीं क्या?" बहनों ने कहा-“महाराज ! वह तो नास्तिक बन गई है। उसने अब धर्म-कर्म करना सब छोड़ दिया है।" वृद्ध मुनिवर ने सोचा-“मैं स्वयं भिक्षाचरी के बहाने उसके यहाँ जाकर उसे युक्तिपूर्वक धर्म और कर्म का वास्तविक स्वरूप समझाऊँ तो सम्भव है कि उसकी धर्म के प्रति डिगी हुई आस्था पुनः सुदृढ़ हो जाय।" एक दिन वे उस बुढ़िया के यहाँ पहुँचे। बुढ़िया ने उठकर मुनिराज को वन्दना की। उन्होंने बुढ़िया से पूछा कि “आजकल तुमने धर्मध्यान, संतदर्शन, धर्मक्रिया आदि क्यों छोड़ दी हैं ? धर्मक्रियाएँ क्यों नहीं करतीं?" इस पर बुढ़िया तपाक से बोली-“महाराज ! यह धर्म आप ही सँभालो। मुझे ऐसा धर्म नहीं चाहिए।'' मुनिराज-"क्यों, क्या बात है? क्या धर्म ने तुम्हें धोखा दिया है ?" बुढ़िया-“हाँ, धोखा ही तो दिया है ! इतने-इतने वर्ष हो गए मुझे धर्म करते-करते, मेरे बेटे का विवाह हुए बारह वर्ष हो गए, उसके एक भी पुत्र नहीं हुआ। जो धर्म एक पौत्र भी नहीं दे सकता, वह मेरे किस काम का?" मुनिराज ने बुढ़िया के क्षोभभरे वचन सुनकर सोचा-“यह बुढ़िया वास्तविक धर्म के स्वरूप और कार्य से अनभिज्ञ है। इसी कारण भ्रान्तिवश पुण्य को धर्म समझ बैठी है। इसे युक्तिपूर्वक समझाना ही ठीक रहेगा।" अतः मुनिवर ने कहा-“बहन ! तुम्हारे पुत्र के पुत्र न होने में धर्म कारण न होकर अन्य कई सांसारिक कारण हो सकते हैं। जैसे किबेटा और बहू स्वस्थ न होना, दोनों में परस्पर मेल न होना, बेटे का परदेश रहना, बेटे या बहू का सन्तानोत्पत्ति के योग्य न होना, माता-पिता की सेवा न करने से उनसे प्राप्त होने वाले आशीर्वाद से वंचित होना इत्यादि।' ___ बुढ़िया बोली-“महाराज ! मैं इतनी भोली नहीं हूँ। मेरे बाल पक गए हैं, इसके साथ मेरा अनुभव भी परिपक्व हो गया। आपने सन्तान न होने में जिन-ज़िन कारणों को गिनाया है, उनमें से एक भी कारण नहीं है तथा मैंने संतों के मुख से कई कथाएँ सुनी हैं, जिनमें बताया गया था-अमुक व्यक्ति को धर्म के प्रताप से बेटा हुआ,