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________________ आत्म- -मैत्री से मुक्ति का ठोस कारण ३०५ महात्मा गांधी जी के जीवन में पाँचों चिन्तनसूत्र थे महात्मा गांधी जी के जीवन में मैत्रीभाव के नैतिक दृष्टि से बताये गये ये पाँचों चिन्तनसूत्र ओतप्रोत थे । दक्षिण अफ्रीका में जिस समय काले- गोरों का रंगभेद बहुत जोर से चल रहा था । काले लोगों (जिसमें हिन्दुस्तानी भी गिने जाते थे) के खिलाफ गोरे लोगों का अत्याचार, घृणा, द्वेष, काले कानून, अन्याय, वैर-विरोध चल रहा था। गांधी जी ने हिन्दुस्तान के लोगों को संगठित करके सत्याग्रह करने का सर्वसम्मति से तय किया था । किन्तु तत्कालीन जनरल स्मट्स को इस बात का पता लगा तो उन्होंने गांधी जी को बुलाकर काले लोगों के खिलाफ अन्याय, अत्याचारपूर्ण कानून रद्द करने का विश्वास दिलाया, बशर्ते कि गांधी जी सत्याग्रह न करें। गांधी जी ने इस बात को स्वीकार किया, हिन्दुस्तानी लोगों से कहा कि अब हमें सत्याग्रह नहीं करना है। इस पर आलमगिर पठान बहुत उत्तेजित हो गया और उसने सभा में कहा- गांधी जी दोतरफी बात करते हैं। मैं गांधी जी को सत्याग्रह न करने पर मारूँगा । और सचमुच, जब गांधी जी कहीं जा रहे थे, तो रास्ते में ही रोककर उन्हें पीटा। गांधी जी के काफी चोट आई, फिर भी वे शान्त रहे। वहाँ खड़े एक अंग्रेज मित्र ने गांधी जी से कहा - " आप इस पर मुकद्दमा चलाइये। मैं साक्षी दूँगा ।" परन्तु गांधी जी ने कहा - "इस भाई की गलतफहमी हुई है। यह जब समझेगा, तंब अपने आप पश्चात्ताप करेगा। मुझे इस पर मुकद्दमा नहीं चलाना है।" और इसके कुछ ही दिनों बाद जब उसें अपनी भूल महसूस हुई तो वह गांधी जी के चरणों में आँसू बहाते हुए गिर पड़ा। उनसे क्षमा माँगी। गांधी जी ने उसे सान्त्वना दी। इस प्रकार मैत्री का कदम बढ़ाते हुए गांधी जी ने क्षमता (क्षमा), धैर्य और गम्भीरता का परिचय दिया । गांधी जी के दाक्षिण्य गुण का एक उदाहरण और जब गांधी जी अफ्रीका से स्वदेश के लिए विदा हो रहे थे। तब वहाँ के सभी हिन्दुस्तानी लोगों ने मिलकर उन्हें देश-सेवा के लिए बहुत-से सोने-चाँदी के आभूषण भेंट किये। कस्तूरबा का मन चल गया कि ये गहने तो मैं अपनी पुत्रवधू के लिए रखूँगी । परन्तु गांधी जी ने इससे बिलकुल इन्कार करते हुए कहा - " ये गहने हमें देश सेवा के लिए मिले हैं। इसलिए हमें इनमें से कुछ भी अपने व्यक्तिगत उपयोग में लेने का अधिकार नहीं है ।" यह था स्वदेश मैत्री के लिए गांधी जी का दाक्षिण्य । १ १. म. गांधी जी की आत्मकथा : सत्य के प्रयोग' से सार संक्षेप
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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