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________________ * ३०० 8 कर्मविज्ञान : भाग ६ * “नहि वेरेण वेराणि समंतीध कदाचन। अवेरेण वेराणि समंतीध सदातन।" -संसार में वैर से वैर कभी शान्त नहीं होता, अवैर (मैत्रीभाव) से ही सदा वैर शान्त होता है। इसे भलीभाँति समझने के लिए एक ऐतिहासिक उदाहरण लीजिए-काशी के राजा ब्रह्मदत्त की राज्यलिप्सा और वैभवमद बहुत बढ़ा हुआ था। उसने कौशल देश को हथियाने के लिए कौशलराज्य के शान्त एवं प्रजापालक राजा दीर्घतिराय के पास दूत के द्वारा सन्देश भेजा-कौशलराज्य को सौंप देने का। कौशलराज के द्वारा दूत के द्वारा शान्ति रखने और युद्ध न करने का सन्देश भिजवाया। परन्तु उसे न मानकर काशीराज ने कौशल पर चढ़ाई कर दी। यद्यपि कौशल देश की सेना वीरतापूर्वक लड़ी। किन्तु संख्या में अल्प होने के कारण हार गई। कौशलराज को बंदी बनाकर काशीराज ने कौशल देश पर अपना झण्डा फहरा दिया। राज्य पर अपना अधिकार होने की घोषणा भी कर दी। इसे सुनकर कौशल की प्रजा को बहुत दुःख और क्षोभ हुआ, पर लाचार थी वह। इसके पश्चात् काशीराज ने कौशलं-नरेश को अपनी रानी सहित देश निकाला.दे दिया। कौशलराज के मन में राज्यलिप्सा तो थी नहीं। उन्होंने तथागत बुद्ध के सन्देश को जीवन में आचरित किया हुआ था। ___ अतः राजा-रानी दोनों ने कुछ आवश्यक सामान साथ में लेकर वहाँ से कूच किया। वे कई जगह घूमे, किन्तु कहीं भी स्थिर न हो सके। प्राचीनकाल में वाराणसी में गंगा के तट पर बहुत से साधकों को निःशुल्क रहने का फरमान था। वह भू-भाग काशी से बाहर माना जाता था। दोनों ने वहीं झोंपड़ी बनाकर रहने का निश्चय किया। वहीं गुप्त रूप से रहने लगे। रानी गर्भवती थी। अतः वहीं प्रसव कराया गया। पुत्र-जन्म हुआ। पुत्र का नाम रखा दीर्घायुकुमार। कुछ बड़ा होने पर उसे अपने पास रखना उचित न समझकर एक प्रसिद्ध गुरुकुल में भर्ती करा दिया। वहीं वह अध्ययन करता और कभी-कभी अवकाश के दिन माता-पिता से मिलने आ जाता था। इस प्रकार शान्ति और आनन्दपूर्वक दिन व्यतीत हो रहे थे। वहाँ रहते-रहते कई वर्ष बीत गये। एक दिन कौशलराज का पुराना परिचित नापित, जो अब काशीराज के पास रहता था, उस झोंपड़ी पर आया, उसने कौशल के पूर्व राजा-रानी को वहाँ रहते देखा और काशीराज को सन्तुष्ट और प्रसन्न करके पुरस्कार पाने के लोभ से ९. धम्मपद, मैत्रीवर्ग.
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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