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१२ कर्मविज्ञान : भाग ६
आज इन्हीं दो कर्मों के कारण सांसारिक जीवों के ज्ञान की अनन्त शक्ति आवृत है, दर्शन की असीम शक्ति भी आवृत है, अवरुद्ध है। ये दोनों कर्म आत्मा की, ज्ञान और दर्शन की शक्ति पर रुकावट डालते हैं। हमारी आत्मा के अभिन्न एवं निजी गुण हैं- ज्ञान और दर्शन, ये दोनों आवरण से मुक्त नहीं हैं। धर्म (उक्त कर्मद्वय के कारण) ज्ञान और दर्शन की मूर्च्छित और सुषुप्त शक्ति को विकसित और जाग्रत करता है।
संवर- निर्जरारूप धर्म का प्रभाव
आठ कर्मों में एक कर्म है - मोहनीय । यह कर्म जीव (सांसारिक आत्मा) की. दृष्टि (सम्यक्त्व) और चारित्र, दोनों को विकृत करता है। मोहकर्म का एक कार्य दृष्टि को मूढ़, मूर्च्छित और विकृत करना है, जिसके कारण मनुष्य सत्य को, यथार्थ को तथा सजीव-निर्जीव को वास्तविक रूप में जान-पहचान नहीं पाता । इस कर्म से दृष्टि विपर्यस्त या मोहित - मूर्च्छित हो जाने पर व्यक्ति किसी वस्तु को ठीक से जाँच-परख या देख नहीं सकता एवं ठीक निर्णय नहीं ले पाता; हर बात मेंशास्त्र प्ररूपित सत्य के प्रति या आत्मा-परमात्मा, पुनर्जन्म - पूर्वजन्म, इहलोकपरलोक, जीवन-मरण, जीवादि नवतत्त्व आदि के विषय में अपनी शंका, वहम, अविश्वास या अश्रद्धा प्रकट करता रहता है। यह मोहनीय कर्म का ही प्रभाव है कि व्यक्ति जीव (सचेतन) को अजीव (अचेतन) तथा अजीव को जीव मानता है, वैसी श्रद्धा रखता है, धर्म (कर्मों से मुक्ति दिलाने वाले संवर- निर्जरारूप शुद्ध धर्म ) को अधर्म (पुण्य या पाप) समझता है, तथैव अधर्म को धर्म समझता है। स्व-पर-कल्याण-साधक आत्मार्थी साधु को असाधु ( ढोंगी, दम्भी, उदरम्भरी) समझता-मानता है तथा असाधु ( भंगेड़ी, गंजेड़ी, चारित्रभ्रष्ट, हिंसा - परायण व्यक्ति) को साधु मानता - समझता है। संसार के मार्ग (शुभाशुभ कर्म = पुण्य-पाप) को मोक्ष (कर्म) से मुक्त होने ( संवर - निर्जरा) का मार्ग समझता है तथा मोक्ष के मार्ग को संसार का मार्ग समझता है । इसी प्रकार अष्टविध कर्मों से मुक्त को अमुक्त और अमुक्त को मुक्त समझता है । '
शुभ कर्मफल को धर्मफल मानना : महाभ्रान्ति
पड़ोसी धर्मों की देखादेखी जैनधर्म के सामान्य अनुयायियों ने ही नहीं, कतिपय बड़े-बड़े विशिष्ट पण्डितों, विद्वान् आचार्यों तथा कई साधुओं ने शुभानवरूप या शुभबन्धरूप पुण्य ( शुभ कर्म ) को धर्म मान लिया है। जिस आम्रव
१. देखें - स्थानांगसूत्र में दसविहे मिच्छत्ते पण्णत्ते इत्यादि पाठ, स्थानांग, स्था. 90