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________________ ॐ २९६ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ करके दूसरों को मित्र बनाते हैं। जिसको मित्र बनाया जाता है, व्यवहार में उसकी कसौटी इन छह बातों से की जाती है-"जो देता भी है, लेता भी है; जो खाता भी है, खिलाता भी है; जो (तथाकथित) मित्र को अपनी गुप्त बातें दिल खोलकर बताता भी है और उसकी गुप्त बात सुनता-पूछता भी है।'' व्यावहारिक जगत् में मित्रता में दुराव-छिपाव नहीं होता, एक-दूसरे का स्वार्थ प्रायः नहीं टकराता। नीतिशास्त्र मित्रता की ये छह कसौटियाँ मानते हैं। इतना होते हुए भी एक मित्र दूसरे मित्र की बात को ठुकरा देता है या आर्थिक स्वार्थ आ जाता है अथवा दूसरे से छिपाने की वृत्ति आ जाती है, वहाँ यह व्यावहारिक मैत्री टूट जाती है। . ऐसी व्यावहारिक मैत्री प्रायः विश्वसनीय और चिरस्थायी नहीं प्रायः देखा गया है कि छोटी-सी बात पर अहं की टक्कर होते ही मैत्री का महल धराशायी हो जाता है। कभी-कभी दो में से किसी एक की चरित्रहीनता, कुटिलता, कामुकता या पर-स्त्रीगामिता अथवा दुर्व्यसनलिप्तता को देखकर दूसरा व्यक्ति उक्त मित्र से सम्बन्ध तोड़ देता है। इसलिए व्यावहारिक जगत् की मैत्री बहुत ही जल्दी टूट जाती है। वह कई कारणों से प्रायः विश्वसनीय और चिरस्थायी नहीं हो पाती। व्यावहारिक जगत् में मैत्री और वैर के लिए दूसरा चाहिए व्यावहारिक जगत् में मैत्री के लिए भी. दूसरा चाहिए और वैर-विरोध (शत्रुता) के लिए भी दूसरा चाहिए। जब तक सामने दूसरा नहीं होता, तब तक न तो मैत्री हो सकती है और न ही वैर-विरोध। . व्यावहारिक जगत् में वैर-विरोध के मुख्यतया छह कारण ___ व्यावहारिक जगत् में वैर-विरोध के मुख्यतया छह कारण होते हैं-(१) धन के लिए, (२) स्त्री के लिए, (३) जमीन-जायदाद के लिए, (४) जाति-सम्प्रदायराजनीतिक पक्ष-राज्य-राष्ट्रगत तथा वंशानुगत द्वेष के कारण, (५) अपराधों के प्रतिशोध को लेकर, और (६) अहंकारयुक्त वाणी के कारण। ___ भारत की एक प्राचीन कहावत है-“जर जोरू जमीन जोर की, नहीं तो किसी और की।" इसी कहावत के आधार पर प्राचीनकाल में राजाओं, जागीरदारों, भूमिहारों तथा सम्राटों में धनलिप्सा के कारण एक-दूसरे के खजाने को लूटने के १. ददाति प्रतिगृहाति गुह्यमाख्याति पृच्छति। भुंक्ते भोजयते चैव, षड्विधं मित्र-लक्षणम्॥ २. 'सोया मन जग जाए' से भावांश ग्रहण, पृ. ९९
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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