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• मैत्री आदि चार भावनाओं का प्रभाव * २९१
होकर कई व्यक्ति दुष्टता, दुर्जनता, वैर - विरोध, शत्रुता या द्वेषयुक्त दुर्भावना रखते हैं, वे उसे बार-बार हैरान-परेशान करते रहते हैं, उसे हानि पहुँचाने तथा उसको बदनाम करने की चेष्टा करते रहते हैं। वे उस सज्जन व्यक्ति द्वारा उन्हें कही हुई हित की, कल्याण की या धर्म की बात को भी नहीं मानते, बल्कि उलटे रूप में ग्रहण करके उन पर प्रहार करने को भी उतारू हो जाते हैं। ऐसे समय में उन लोगों के साथ मैत्री रखने का तो प्रश्न ही नहीं रहता, न ही उनके प्रति करुणा या मुदिता (प्रमोद) भावना का इजहार किया जा सकता है। ऐसी स्थिति में समभावी साधक के लिए माध्यस्थ्यभावना का प्रयोग ही कर्मबन्ध से बचने का एकमेव मार्ग है।
माध्यस्थ्यभाव का फलितार्थ मौनभाव है
एक समत्वसाधनाशील साधक है, वह किसी व्यक्ति के पापकृत्यों या दोषों को जानता है, फिर भी वह सबके सामने प्रकट नहीं करता और उस दोषी व्यक्ति को भी कहना ठीक नहीं समझता, क्योंकि वह अपने दोषों को सहसा स्वीकार ही नहीं करता, छिपाने और निर्दोष होने की सफाई देने की कोशिश करता है, उलटे उसका दोष एकान्त में कहने पर वह अधिकाधिक भड़ककर द्वेष और रोष करता है, दोष बताने वाले की हितकारी बात मानने के बजाय, उलटा उस पर ही दोषारोपण करके बदनाम करता है, इससे राग-द्वेष और क्लेश बढ़ता है, कर्मबन्ध होता है। यदि वह समभावी साधक उसके दोषों या पापकृत्यों का सार्वजनिक रूप से भण्डाफोड़ करता है, तो बहुत सम्भव है, जनता उसके खिलाफ होकर आक्रोशपूर्वक उसे मारे-पीटे, धिक्कारे, फटकारे या प्राण- हानि अथवा अन्य हानि करे, बहुत सम्भव है, ऐसी स्थिति में वह धर्मविरोधी या प्रतिक्रियाशील बनकर उद्दण्डता धारण करे, हत्या, चोरी, डकैती आदि कुमार्ग पर चढ़ जाए। अतः ऐसी विपरीत वृत्ति वाले पुरुष के प्रति मौनावलम्बन ही श्रेयस्कर है। इसीलिए एक आचार्य ने मध्यस्थ का अर्थ किया है - मौनशील । '
उनके प्रति न तो राग रखे, न द्वेष; मौन या उपेक्षाभाव ही हितावह
आशय यह है कि जो अपने प्रति द्वेष, दुर्भावना, वैर- विरोध, निन्दा, घृणा आदि करते रहते हैं, जो दोषदर्शी हैं, समझाये - मनाये जाने पर भी अपने दुराग्रह या विपरीत भाव को नहीं छोड़ते, सदैव वक्र और कुतर्की रहते हैं, पापी, दुष्ट एवं
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(क) 'समतायोग' से भावांश ग्रहण, पृ. ७४-७५
(ख) मध्यस्थो मौनशीलः । स्वप्रतीतानपि कस्यापि दोषान्न गृहाति, तद्ग्रहणाद्धि प्रभूत लोकविरोधितया धर्मक्षति - सम्भवात् ।