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* १० ॐ कर्मविज्ञान : भाग ६
है, इसका ज्ञान होना जरूरी है। जैन-कर्मविज्ञान के अनुसार इन चारों की तुलना हम क्रमशः (१) कर्म, (२) कर्म के आस्रव और बन्ध, (३) संवर (कर्मनिरोधरूप),
और (४) निर्जरा (कर्म का आंशिक क्षय) से की जा सकती है। स्पष्ट शब्दों में कर्म, आस्रव-बन्ध, संवर और निर्जरा, इन चारों तत्त्वों का परिज्ञान दुःखों से सर्वथा छुटकारे की तरह कर्मों से सर्वथा छुटकारे के लिए अतीव आवश्यक है। यही बौद्धदर्शन के अनुसार निर्वाण (जैनदर्शन के अनुसार कर्मों से सर्वथा मोक्ष व अन्त में निर्वाण) की परिकल्पना है।
१. 'बौद्धदर्शन' (राहुल सांकृत्यायन) से भावांश ग्रहण