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________________ ॐ २२६ ॐ कर्मविज्ञान : भाग ६ * जानकर आत्म-स्वरूप का ध्यान (सेवन) करता है, उसी की अन्यत्वानुप्रेक्षा कृतकार्य होती है। आत्म-बाह्य कोई भी पर-पदार्थ मेरा नहीं; अन्यत्वचिन्तन है 'मोक्षमाला' में भी इस भावना का सक्रिय रूप बताते हुए कहा है-“यह शरीर मेरा नहीं; यह रूप, यह कान्ति, यह स्त्री मेरी नहीं; ये पत्र, भाई, दास, स्नेही और सम्बन्धी मेरे नहीं हैं। यह गोत्र, जाति, लक्ष्मी, महालय, यौवन, भूमि मेरी नहीं है। यह मोह सिर्फ अज्ञानता का है। इसलिए हे जीव ! सिद्धगति प्राप्त करने हेतु अन्यत्व की बोधदात्री अन्यत्वभावना का विचार कर।"२ । मृगापुत्र ने अन्यत्वभावना से आत्मा को भावित कर लिया था पूर्व-जन्म के संस्कारों के कारण मुगापुत्र जब साधु जीवन अंगीकार करने को तत्पर हुआ तो उसके माता-पिता ने उससे मोह और ममत्व भरी बातें कहकर साधुत्व अंगीकार करने से रोकना चाहा, तब मृगापुत्र उन्हें अन्यत्वानुप्रेक्षा से अनुप्राणित होकर कहता है-"कौन किसका सगा-सम्बन्धी और रिश्तेदार है? ये सभी संयोग निश्चित ही वियोगरूप और क्षणभंगुर हैं। ये सब क्षेत्र, घर, सुवर्ण, पुत्र, स्त्री, माता-पिता, भाई-बांधव, यहाँ तक कि शरीर भी अपना नहीं है। आगे या पीछे कभी न कभी इन सबको छोड़कर अवश्य जाना ही पड़ेगा। कामभोग किंपाकफल के सदृश त्याज्य हैं। यदि जीव इन्हें नहीं छोड़ता है तो ये कामभोग स्वयं इन्हें छोड़े देंगे। जब छोड़ना ही है तो इन्हें स्वेच्छापूर्वक क्यों न छोड़ दिया जाए।" इस प्रकार माता-पिता के प्रश्नों का उत्तर मृगापुत्र ने अन्यत्वानुप्रेक्षा की दृष्टि से दिया। अन्त में वे स्वयं माता-पिता की आज्ञा प्राप्त कर प्रव्रजित हो गए और संयम-साधना करके मोक्ष गए।३ १. (क) 'संयम कंब ही मिले?' (आ. भद्रगुप्तविजय जी) में अन्यत्वभावना से भाव ग्रहण (ख) जो जाणिऊण देहं जीवसरूपादु तच्चदो भिण्णं। अप्पाणं पि य सेवादि, कज्जकरं तस्स अण्णत्तं। -कार्तिकेयानुप्रेक्षा ८२ २. ना मारां तन रूप कांति युवती, ना पुत्र के भ्रात ना। ना मारां भृत्य स्नेहीओ स्वजन के, ना गोत्र के ज्ञातना॥ ना मारां धन-धाम यौवन धरा, ए मोह अज्ञानना। रे रे ! जीव विचार एमज सदा, अन्यत्वभावना॥ • .-मोक्षमाला, पृ. २५ ३. देखें-उत्तराध्ययनसूत्र का १९वाँ मृगापुत्रीय अध्ययन
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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