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संवर और निर्जश की जननी : भावनाएँ और अनुप्रेक्षाएँ
सुविचारों और कुविचारों को क्षमता एवं महत्ता अनगढ़ मनुष्य को सुगढ़ और नर-पशु को नर-नारायण बना देने की क्षमता अगर किसी में है तो सुविचारों में है। उत्थान और पतन इसी पर निर्भर है। महामानवों का यदि किसी ने जीवन-निर्माण किया है तो इन विचारों ने ही और नर-पिशाचों को गढ़ने की भी सामर्थ्य इन विचारों में है। इन्हीं सुविचारों ने भगवान महावीर, बुद्ध, राम एवं कृष्ण जैसे नर-पुंगवों को महापुरुष बनाये और इन्हीं कुविचारों ने कंस, गोशालक, हिटलर, रावण, मुसोलिनी आदि अधोगामी मनुष्यों को बनाये। ..
वैसे देखा जाये तो सामान्य विचारों का भी अपना महत्त्व है और तदनुसार कार्यों का भी अपना महत्त्व है। परन्तु ये दोनों सामयिक और अस्थिर होते हैं। वे बादलों की तरह मानस-आकाश में मँडराते हैं और गरज-बरसकर समाप्त हो जाते हैं अथवा कुछ मेघ केवल गर्जना करके या आकाश में कुछ देर ठहरकर बिखर जाते हैं। किन्तु जो बादल बार-बार आते हैं, गरजते हैं और जमकर बरसते हैं, वे वृष्टि का समय पूर्ण हो जाने पर भी खेत की जमीन को नरम बना जाते हैं और उस समय कृषक द्वारा बीजारोपण करने पर एक दिन वे बीज लहलहाती फसल के रूप में खेत को खुशहाली से भर देते हैं। ऐसे बादल अपने प्रभाव को देर तक बनाये रखते हैं।
. सुविचारों का पुनः पुनः आवर्तन, भावन एवं अनुप्रेक्षण जो आवाज अन्तरिक्ष में देर तक गूंजती रहती है, वह भी अपने प्रभाव को वहाँ छोड़ जाती है। उसके कम्पन काफी समय तक वातावरण में बने रहते हैं। ठीक इसी प्रकार जिन सुविचारों को अपने ध्येय के अनुरूप अथवा आप्तपुरुषों द्वारा अनुभूत सिद्धान्तों के अनुकूल समझा जाता है, उनका बार-बार आवर्तन, अनुप्रेक्षण एवं भावन करने से वे सुविचार कर्ता के अवचेतन मानस पर चिरस्थायी एवं शहरी छाप छोड़ जाते हैं।