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________________ दशविध उत्तम धर्म ३ १६७ सत्य केवल वाणी का विषय नहीं जहाँ सत्य की आराधना - साधना की बात चलती है, वहाँ आचार्यों ने सत्य को केवल वाणी से नहीं, मनश्चिन्तन और कार्य-व्यवहार से भी जोड़ा है। इसलिए उत्तम सत्य धर्म केवल वाणी का ही विषय नहीं, अपितु वह मन से सत्य सोचने, भावों में सत्यता होने तथा आचरण और व्यवहार में, चेष्टा और कार्य में सत्यता का व्यापक विषय है।' सत्य : संवर-निर्जरा की साधना के लिए अनुपम सत्य धर्म मुमुक्ष-साधक के लिए जीवन व्रत है। आकाश के कण-कण में व्याप्त कार्यों को आते हुए रोकना और पूर्वबद्ध कर्मों को समभाव से भोगकर निर्जरा ( कर्मक्षय) करना, सत्य धर्म के माध्यम से बखूबी हो सकता है। सत्य को प्रायः जैनाचार्यों ने वाणी तक ही सीमित रखा है। प्रायः जैनाचार्यों ने सत्य धर्म को वाणी की सत्यता और संयम तक ही सीमित रखा है। 'पद्मनन्दि पंचविंशतिका' में कहा है- " मुनियों को सदैव स्व-परहितकारक, परिमित और अमृत सदृश वचन बोलना चाहिए। कदाचित् सत्य वचन बोलने में बाधा प्रतीत हो तो मौन रहना चाहिए ।" 'सर्वार्थसिद्धि' और 'भगवती आराधना' के अनुसार - श्रावकों, सज्जनों और प्रशस्त जनों द्वारा आत्म- हितकर . एवं अच्छे वचन बोलना सत्य धर्म है। 'मूलाचार' में कहा है- राग, द्वेष और मोह के कारण असत्य वचन तथा दूसरों को संतोष देने वाले ऐसे सत्य वचन को ( अहिंसादृष्टि से ) छोड़ना और शास्त्रों का अर्थ करने में भी अपेक्षारहित वचन को छोड़ना सत्य महाव्रत है। हास्य, भय, क्रोध या लोभ से मन-वचन-काय से विश्वासघात तक तथा पीड़ाकारक वचन कदाचित् बोलना सत्यव्रत है । २ १. सत्यं थार्थ वाङ्मनसी यथादृष्टं यथाश्रुतं यथानुमितं तथैव प्रकटीकरणम् । २. (क) स्वपरहितमेव मुनिभिर्मितममृतसमं सदैव सत्यं च वक्तव्यम् । वचनपथ प्रविधेयं धीधनैर्मौनम् ॥ (ख) सतां साधूनां हितभाषणं सत्यम् । (ग) सत्सु प्रशस्तेषु जनेषु साधुवचनं सत्यमित्युच्यते । (घ) रागादीहिं असच्चं चत्ता, परताव - सच्चवयणो त्तिं । सुत्तत्थाणं विकणे अयधावयणुज्झयणं सच्च ॥ हस-भय- कोह-लोहा मणि-वचि-कायेण सव्वकालम्मि । मोसं ण भासिज्जो पच्चमघादी हवदि एसो ॥ -योगदर्शन व्यासभाष्य - पं. वि. १/९१ -भ. आराधना वि. ४६/१५४/१६ - सर्वार्थसिद्धि ९/६/४१२/७ -मूलाचार ६/२९०
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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