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*. १४४ ® कर्मविज्ञान : भाग ६ *
होने की कोई चिन्ता नहीं होती। इसके विपरीत क्रोधी का हृदय सदैव भय से काँपता रहता है, उसे सदैव दूसरे के द्वारा प्रहार होने का डर रहता है। क्षमाशील व्यक्ति के सभी मित्र बन सकते हैं, उसे सभी अपना मानकर चाहते हैं, परन्तु क्रोधी व्यक्ति को कोई नहीं चाहता, उसके पुराने मित्र भी उससे किनाराकसी कर जाते हैं। क्षमारूप कवच जिसने हृदय में धारण कर लिया, उस पर क्रोध के या क्रोधी व्यक्तियों के सभी प्रहार निरर्थक हो जाते हैं। उत्तम क्षमाशील में बाह्य निमित्तों की प्रतिकूलता आने पर भी आत्मा के आश्रय से उत्पन्न शान्ति बनी रहती है। कायरता और क्षमा में बहुत अन्तर है
कायरता, बुजदिली और क्षमा में आकाश-पाताल का अन्तर है। क्षमावान् को कोई भी संकट हिला नहीं सकता, वह संकट के समय धीर, गम्भीर और शान्त होकर आत्म-स्वभाव का चिन्तन करता है, जबकि कायर और बुजदिल संकट आते ही घबरा जाता है, उसके चित्त में चंचलता, उद्विग्नता और भीति पैदा हो जाती है, हृदय की धड़कन बढ़ जाती है और कभी-कभी बुजदिल की हृदयगति भी अवरुद्ध हो जाती है। क्षमावान् में संकट, विपत्ति और मृत्यु भय उपस्थित होने पर भी धैर्य, गाम्भीर्य और निश्चलता बनी रहती है। क्षमा का तत्त्वज्ञ राजगृह निवासी सुदर्शन श्रमणोपासक अर्जुनमाली के भंयकर मृत्यु भय के आतंक होने पर भी निर्भय, निश्चल, अनुद्विग्न होकर भगवान महावीर के दर्शनार्थ जा रहा था। अर्जुनमाली की भयावनी सूरत और मुद्गर के प्रहार से सुदर्शन को चूर-चूर कर देने की मुद्रा देखकर भी वह शान्त और क्षमानिष्ठ रहा। फलतः अर्जुनमाली भी प्रहार न कर सका, यक्ष भी उसके शरीर से निकलकर पलायन कर गया। उत्तम क्षमा में महान् शक्ति है, जो कायरता में नहीं होती। उत्तम क्षमा किसमें प्रगट हो सकती है, किसमें नहीं ?
उत्तम क्षमा का निर्णय हम व्यक्ति की बाह्य प्रवृत्तियों के आधार पर नहीं दे सकते। यद्यपि उत्तम क्षमा एक ही प्रकार की है, उसे जीवन में उतारने के स्तर में अन्तर हो सकता है। अनन्तानुबन्धी क्रोध के अभाव से अविरत सम्यग्दृष्टि में उत्तम क्षमा प्रकट होती है तथा अणुव्रती और महाव्रती में क्रमश: अप्रत्याख्यानी एवं प्रत्याख्यानी क्रोध का अभाव होने से उत्तम क्षमा पल्लवित-पुष्पित होती है एवं आठवें गुणस्थान से ऊपर के सभी गुणस्थानों में संज्वलन क्रोध का अभाव
१. 'जैन आचार : सिद्धान्त और स्वरूप' (आचार्य देवेन्द्र मुनि शास्त्री) से भाव ग्रहण, पृ. ६२४ २. (क) वही, पृ. ६२४ . (ख) देखें-अन्तकृद्दशांगसूत्र में 'मोग्गरपाणि प्रकरण' में सुदर्शन श्रमणोपासक का वृत्तान्त