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8. ११४ 3 कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ
सम्यक् विशेषण जोड़ने से ही वास्तविक समिति
इन पाँचों मुख्य प्रवृत्तियों के साथ ‘सम्यक्’ विशेषण जोड़ने पर ही ये ‘समिति' होंगी। 'तत्त्वार्थसूत्र' (९/४) में जो सम्यक् शब्द अंकित है, उसकी अनुवृत्ति ईयामिति आदि प्रत्येक के पूर्व जोड़ी जाएगी, तभी वे सच्चे माने में ‘समितियाँ' कहलायेंगी। सामान्यतया ईया का अर्थ चलना और भाषा का अर्थ बोलना है। अपने इसी रूप में वे संवर नहीं होतीं, वे संवर तभी होती हैं जब व्यक्ति विवेकपूर्वक (सम्यक् ) गमनक्रिया तथा विवेकपूर्वक भाषणक्रिया आदि करेगा। क्योंकि ईर्या, भाषा
आदि शब्द सामान्य हैं। जब पाँचों के नाम के आगे सम्यक् (विवेकपूर्वक), विशेषण लग जाएगा, तभी वे पाँचों समितियाँ संवर बन सकेंगी। जैसे-सम्यक् ईर्या, सम्यक् भाषा, सम्यक् एषणा, सम्यक् आदान-निक्षेपण और सम्यक् उत्सर्ग (परिष्ठापन)।
दूसरी दृष्टि से 'भगवती आराधना' में 'सम्यक्’ विशेषण लगाने का रहस्यार्थ इस प्रकार बताया गया है-“भलीभाँति जीवों के भेद तथा उनके स्वरूप के ज्ञान के साथ श्रद्धान गुण-सहित पदार्थों का उठाना-रखना, गमन करना, बोलना आदि जो प्रवृत्तियाँ की जाती हैं, वे सम्यक होती हैं, वही (यथार्थ में) समिति है।''१ गुप्ति और समिति में अन्तर ___ प्रश्न होता है-गुप्ति में भी अशुभ योग का निग्रह और शुभ योग का संग्रह, अर्थात् अशुभ योग से निवृत्ति और शुभ योग में प्रवृत्ति होती है, इसी प्रकार समिति में भी अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति होती है, फिर दोनों में अन्तर क्या रहा?
इसका समाधान यह है कि गुप्ति में असत्क्रिया का निषेध मुख्य है, जबकि समिति में सक्रिया की प्रवृत्ति मुख्य है। गुप्ति अन्ततोगत्वा प्रवृत्तिरहित भी हो सकती है, परन्तु समिति कभी प्रवृत्तिरहित नहीं हो सकती। यह प्रविचार-प्रधान ही होती है। आवश्यक की टीका में एक प्राचीन गाथा से भी यह स्पष्ट है
“समिओ नियमा गुत्तो, गुत्तो समियतणमि भइयव्यो। ___ कुसलवइ मुदीरितो जं य गुत्तो वि समिओ वि॥" तात्पर्य यह है कि गुप्ति प्रवृत्ति एवं निवृत्ति उभयरूप है, जबकि समिति केवल प्रवृत्तिरूप है। अतएव समिति वाला नियमतः गुप्ति वाला होता है, क्योंकि समिति भी सत्प्रवृत्तिरूप अंशतः गप्ति ही है। परन्तु जो गुप्ति वाला है, वह विकल्प से समिति वाला होता है, यानी वह समिति वाला हो भी, नहीं भो हो। क्योंकि
१. (क) तत्त्वार्थसूत्र (हिन्दी विवेचन सहित) (उपाध्याय केवल मुनि) से भाव ग्रहण. पृ. ४०४
(ख) समिओ नियमा गुत्तो. गुत्तो समियतणमि भइयव्वो। (ग) एयाअं अट्ठसमिईओ।
-उत्तराध्ययनसूत्र, अ. २४. गा. ३