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भगवान ने उत्तर दिया-गौतम ! आज यह इतना कष्ट क्यों पा रहा है, इसका उत्तर पाने के लिए वर्तमान को नहीं, अतीत को देखो। पूर्व-जन्म में उसने क्या-क्या कर्म किये हैं ? उन कर्मों पर विचार करो तो तुम्हें समाधान मिलेगा कि इसे दुःख देने वाला कोई अन्य नहीं, इसी के स्वकृत कर्म हैं। ___ जैनदर्शन कर्म-विज्ञान के सहारे सूक्ष्म समाधान तक पहुँचता है। प्राणी के एक या दो जन्म तक नहीं, किन्तु सैंकड़ों हजारों पूर्व-जन्मों तक कर्म संस्कारों को खोजता रहा है और उस विज्ञान के आधार पर उसकी हर गति-मति का समाधान भी दिया गया है।
जैनधर्म का कर्म-विज्ञान इतना सूक्ष्म और इतना सटीक है, इतना तर्कसंगत और व्यावहारिक है कि यह सिद्धान्त अगर विज्ञान के हाथ में पहुँच गया होता तो आज वह मानव-जीवन की अनेक गूढ़ पहेलियाँ सुलझा देता और संसार को 'कर्म' के बंध, कारण और परिणाम (फल) से अवगत कराकर शायद उसे इतने घोर दुराचार से कुछ हद तक रोक भी सकता था। जिस धर्म और अध्यात्म के पास कर्मसिद्धान्त जैसा विज्ञान है, उसके पास प्रयोग, पर्यवेक्षण, अनुसंधान जैसे विकसित साधन नहीं हैं। इसलिए कर्म-विज्ञान आज सिर्फ धार्मिक सिद्धान्त बनकर रह गया है।
मैंने बचपन से ही कर्मशास्त्र को पढ़ा है। अनेक गुरु गम्भीर ग्रन्थों का परिशीलन भी किया है। जैनधर्म की सचेलक एवं अचेलक परम्परा में कर्म-सिद्धान्त पर बहुत ही सूक्ष्म, बहुत ही गहराई से चिन्तन-मनन और अध्यात्मिक अनुभव किया गया है और मनुष्य-जीवन की प्रत्येक समस्या को कर्म-विज्ञान की दृष्टि से देखकर उसका तर्क-संगत समाधान भी दिया गया है। जैन मनीषियों का कर्म विषयक चिन्तन इतनी गहराई तक गया है कि समूची सृष्टि के कार्य-कारण भाव पर विचार करके उसका सम्यक् समाधान दिया गया है। अगर हम कर्म-साहित्य को पढ़ेंगे तो अपनी हर समस्या का समाधान स्वयं खोजने में कुशल हो जायेंगे।
प्रायः हम अपने सुख-दुःख का दोष परिस्थितियों के मत्थे मँढ़ देते हैं या किसी दूसरे के गले बाँधकर उसे कोसते हैं, गालियाँ देते हैं और मन में क्रोध, रोष, द्वेष, अनुताप, पश्चात्ताप, मोह और ममत्व से संत्रस्त होते रहते हैं। कर्म-विज्ञान हमें इस संकट से उबारता है। वह एक ही सशक्त और सम्पूर्ण समाधान देता है-“अत्त कडे दुक्खे ! णो परकडे।" तुम्हें जो दुःख हैं, चिन्ताएँ, तनाव हैं, संकट और संत्रास के कारण हैं वे किसी दूसरे के खड़े किये हुए नहीं, उनका कारण तुम्हारी अपनी ही भावनाएँ, प्रवृत्तियाँ और वृत्तियाँ रही हैं। तुम सिर्फ वर्तमान को देखते हो इसलिए दुःखी हो, अतीत में झाँकने की चेष्टा करो, इन दुःखों का कारण समझ में आ जायेगा। दुःख का कारण समझ में आने पर उसका निवारण भी किया जा सकेगा। दुःख का सही कारण पता चलने पर व्यर्थ का रोष, द्वेष, चिन्ता, शोक स्वयं शान्त हो जायेगा। इस प्रकार कर्म-सिद्धान्त हमें बाहर से भीतर मोड़ता है, अन्तर्मुखी