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________________ ® १०६ ७ कर्मविज्ञान : भाग ६ ॐ कायगुप्ति के दो रूप : दूसरी अपेक्षा से 'तत्त्वार्थसूत्र' की सिद्धसेनीया वृत्ति में भी कायगुप्ति के दो रूप बताये हैं(१) कायिक क्रियाओं (शरीर की समस्त चेष्टाओं) की सम्पूर्ण निवृत्ति अर्थात् समस्त कायचेष्टाओं का निरोध करके शरीर को एक ही स्थान पर, एक ही आसन पर स्थिर कर लेना-कायोत्सर्ग मुद्रा धारण कर लेना, कायोत्सर्ग-कायगुप्ति या कायचेष्टानिरोधरूप कायगुप्ति है। (२) हिंसादि पाप-प्रवृत्तियों से विरत होना कायगुप्ति है। आगमों में कायगुप्ति के प्रेरक कुछ रूपक ___ इसके लिए कुछ रूपक विभिन्न आगमों में दिये गए हैं, संक्षेप में इस प्रकार हैं'सूत्रकृतांग' के अनुसार-“जिस प्रकार चतुर कछुआ बाहरी आक्रमण को भाँपते हुए अपने शरीर के समस्त अंगों को अन्दर समेट लेता है, वैसे ही बुद्धिमान् (कायसंवर-साधक) अपनी आत्मा को पापकर्मों से (पापकारी प्रवृत्तियों से) सदैव बचाता रहे।" 'उत्तराध्ययनसूत्र' के अनुसार-"जैसे गरुड़ को आता देखकर साँप बहुत सँभलकर, उससे बचकर चलता है, वैसे ही (संवर-साधक) पाप-प्रवृत्तियों से बहुत सावधान होकर चले।" एक रूपक है-भारण्डपक्षी का। जैसे भारण्डपक्षी हमेशा सावधान और जागरूक रहता है, वैसे ही साधक सतत जागरूक एवं अप्रमत्त रहकर चले। कायगुप्ति का लक्ष्य संवर और निर्जरा का अर्जन वस्तुतः कायगुप्ति का यही लक्ष्य है कि साधक सतत अप्रमत्त, संयत एवं नियंत्रित रहकर पापानवों का निरोध करे तो संवर उपार्जित कर सकता है और काया को आत्मलक्षी रखे, आत्मरमण करे तो निर्जरा भी। यह कायगुप्ति नकली या असली ? कुछ अज्ञानी जीव और मानव भी बगुले की भाँति काया को निश्चेष्ट करके, आँखें मूंदकर या श्वास को रोककर निश्चेष्ट होकर बैठ जाते हैं या खड़े ही खड़े रहते हैं अथवा निश्चेष्ट होकर लेट जाते हैं, यौगिक क्रियाओं से शरीर को निश्चेष्ट बना लेते हैं, ये और ऐसी चेष्टाएँ कायोत्सर्गमूलक कायगुप्ति नहीं कही जा १. (क) जहा कुम्मे स अंगाई सए देहे समाहरे। एवं पावाई मेहावी अज्झप्पेण समाहरे॥ (ख) उरगो सुवण्ण पासेव्व संकमाणो तणुं चरे। (ग) भारंड-पक्खीव चरेऽप्पमत्तो। -सूत्रकृतांगसूत्र १/८/१६ ' -उत्तराध्ययनसूत्र १४/४७ -वही ४/६
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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