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ॐ पहले कौन ? संवर या निर्जरा ॐ ८९ *
सामान्य साधक की शुभ योग-संवररूप चर्या से
उत्तरोत्तर विकास सामान्य साधक के जीवन में इसी दृष्टि से शुभ योग-संवर की अपेक्षा से विधान किया गया है कि सावधान होकर आत्म-जागृतिपूर्वक यतना से विचरण करने, यतना से चलने-फिरने, खाने-पीने, सोने-जागने, उठने-बैठने या आहारविहार करने आदि प्रत्येक चर्या यतनापूर्वक करने से पापकर्म का बंध नहीं करेगा यानी वह अशुभ योग के निरोधरूप शुभ योग-संवर प्राप्त कर सकेगा एवं भविष्य में भावसंवर और निर्जरा की दृढ़ साधना कर सकेगा।
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