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________________ ८२ कर्मविज्ञान : भाग ६ से लड़ने के लिए सुदृढ़ - सक्षम बनाया जा सके । अर्थात् प्रथम दृष्टि के साथ दूसरी दृष्टि का होना आवश्यक है। यही कारण है कि हितैषी चिकित्सक रोगी का ऑपरेशन करने से पहले उसे दवा देकर रोग को ठीक करने का प्रयास करता है। यदि दवा से रोग मिटता, रुकता या कम नहीं होता, तभी वह ऑपरेशन की सलाह रोगी को देता है। दवा देकर रोग को रोकना या ठीक कर देना संवर-तुल्य है और ऑपरेशन करके रोग को मिटाना निर्जरा-तुल्य है । कामरोग पीड़ित के लिए सर्वप्रथम संवर मार्ग श्रेयस्कर एक व्यक्ति कामुकता के रोग से पीड़ित है । उसे किसी स्त्री को देखते ही तत्काल कामवासना भड़कती है। ऐसी स्थिति में सर्वप्रथम संवर का मार्ग उसकी स्वस्थता के लिए आवश्यक हो जाता है । अर्थात् सर्वप्रथम वह कामवासना के वेग को रोकने के लिए यह उपक्रम करे, मन ही मन अनुप्रेक्षा, अनित्यानुप्रेक्षा करे, तत्पश्चात् यह अनुप्रेक्षा करे कि "यह (स्त्री) मेरी नहीं है, मैं इसका नहीं हूँ।” कामवासना दुःख का कारण है, सुख का कारण नहीं। "कामभोग अनर्थों की खान है । " मैं जान-बूझकर इन अनर्थों को क्यों पालूँ ? इस प्रकार अन्तर्मन को बारबार सुझाव देने पर कामवासना का उफान शान्त हो जाएगा। इसी तरह यह भी सोचे कि काम या कामवासना मेरा ( आत्मा का ) स्वभाव - स्वगुण नहीं है, यह पर-भाव या विभाव है, आत्मा का वैभाविक गुण है, नोकषाय मोहजनित भाव है। इससे मेरा अधःपतन, अशान्ति, दुःख बढ़ेगा। इसी दृष्टि से 'दशवैकालिकसूत्र' में कहा गया है " आयावयाहि चय सोगमल्लं, कामे कमाहि कमियं खु दुक्खं । " “न सा महं, नो वि अहंपि तीसे, इच्चेव ताओ विणएज्ज रागं ॥ २ - [ कामना या कामवासना (काम) के तीव्र आवेग को रोकने के लिए आतापना लो, सुकुमारता का त्याग करो, इसी प्रकार यह सोचकर कि कामना या वासना करना दुःख का कारण है, कामवासना को दबा दो, शान्त कर दो। साथ ही यह वह (कामवासना या कामवासना की निमित्त स्त्री) मेरी नहीं है, न ही मैं उसका हूँ; इस सूत्र से अज्ञात मन को बार-बार सजेशन देकर कामराग को हटा दो। यह काम का तत्काल निरोधरूप संवर है । सम्यग्दृष्टि सम्पन्न व्यक्ति इस प्रकार का प्रयोग करके काम का शमन या स्वैच्छिक दमन करता है। १. खाणि अणत्थाण उ कामभोगा । २. दशवैकालिकसूत्र, अ. २, गा. ५, ४
SR No.004247
Book TitleKarm Vignan Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages550
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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