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५७४ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
इस तथ्य का ज्वलन्त उदाहरण है - समरादित्यचरित्र में अग्निशर्मा का जीव, जो प्रथम भव से द्वेष उत्पन्न करके वैरपरम्परा बढ़ाता ही चला गया है, नौवें भव तक वह गुणसेन के जीव के पीछे तीव्र द्वेषवश पड़ा रहा। नौ जन्मों तक लगातार अपना द्वेष बढ़ाता ही गया। इसी तरह 'पार्श्वनाथ - चरित्र' में कमठ प्रथम भव से ही द्वेष खड़ा करके आगामी दस भवों तक द्वेष अधिकाधिक बढ़ाता ही गया । द्वेष की आग जन्मजन्म में बढ़ती ही गई। आशय यह है कि अग्निशर्मा और कमठ, इन दोनों ने द्वेष की मात्रा चरम सीमा तक बढ़ा दी कि ये प्रत्येक जन्म में अपने माने हुए प्रतिपक्षी (शत्रु) को मारते ही चले गए। परन्तु इन दोनों के प्रतिपक्षी - गुणसेन और मरुभूति के मन में प्रत्येक जन्म में शान्ति और समता भावना रही, प्रतिपक्षी अग्निशर्मा और कमठ के प्रति इनके मन में जरा भी द्वेषभावना या प्रतिशोध की भावना नहीं रही । फलतः ये दोनों अन्त में वीतराग बनकर समस्त कर्मों से मुक्त हो गए। जबकि अग्निशर्मा और कमठ की प्रवृद्ध द्वेषवृत्ति के कारण जन्म-मरण रूप संसार में वृद्धि हुई; वे अनेक पापकर्मों के बन्धन से जकड़ते चले गए। उनके उदय में आने पर भयंक दुःखद फल दीर्घकाल तक भोगना पड़ा, और अब भी भोगना पड़ेगा।
द्वेष की मात्रा में वृद्धि के अन्य कारण भी
होता यह है कि एक बार के कलह आदि किसी कारणवश यदि अपमान, क्रोध, स्वार्थभंग या अहंकार पर चोट आदि मन में घुटते रहते हैं, तो उनसे भी द्वेष की मात्रा में वृद्धि होती रहती है । प्रायः तीव्र अहंकार की वृत्ति द्वेष की मात्रा बढ़ाती है। झूठे गर्व और मिथ्याभिमान से प्रेरित होकर अथवा दूसरों के द्वारा भड़काये जाने पर द्वेष का वह छोटा-सा अंकुर एक दिन द्वेष का जहरीला महावृक्ष बन जाता है।
महाराष्ट्र की एक सच्ची घटना है। एक धनाढ्य पिता के दो पुत्र थे । | उनके 'बहुत बड़ी खेतीबाड़ी थी। पिता की मृत्यु के बाद दोनों भाइयों में जमीन-जायदाद का बंटवारा हो गया। दोनों के हिस्से के खेत के बीच में एक सुपारी का पेड़ था, जिसे बड़ा भाई अपने हक की जमीन में मानता था, और छोटा भाई अपने हिस्से की जमीन में। दोनों भाइयों में पहले वाद-विवाद, गर्मा-गर्मी और तू-तू, मैं-मैं हुई । दोनों भाइयों में एक दूसरे के प्रति द्वेषवश कलह हुआ। दोनों अहंकार के हाथी पर चढ़े हुए थे। दोनों में से कोई भी झुकने को तैयार नहीं था । २
साधारण - सा द्वेष पारस्परिक बोलचाल तक ही सीमित रहे तब तक तो उसे बदला जा सकता है, परन्तु वही द्वेष जब बाढ़ की तरह मर्यादा तोड़कर आगे बढ़ता
१. देखें- समरादित्य केवली चरित्र या समराइच्च कहा तथा पार्श्वनाथचरित्र । २. समाजदिग्दर्शन से संक्षिप्त ग्रहण
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