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५०६ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ उपशम करता है। तत्पश्चात् अप्रत्याख्यानावरण और प्रत्याख्यानावरण लोभ का उपशम करके संज्वलन-लोभ का उपशम करता है।
उपशम श्रेणी और क्षपक श्रेणी के आरोहकों में अन्तर इस प्रकार उपशम श्रेणी वाला संसार यात्री क्रमशः आगे बढ़ता है, बीच-बीच में विश्राम लेता है, विघ्न-बाधाओं को शान्त करता हुआ आगे बढ़ता है, जबकि क्षपक श्रेणी वाला संसारयात्री मोहकर्मों की चाल को सर्वथा निर्मूलन करता हुआ आगे बढ़ता है। क्षपक श्रेणी पर आरोहण करके मोक्षशिखर पर पहुँचने वाले संसार यात्री का विशेष वर्णन हम आगे करेंगे।
दोनों श्रेणियों का दो प्रकार का कार्य और कदम मुख्य रूप से दोनों प्रकार के श्रेणी-आरोहकों का मार्ग सातवें गुणस्थान से आगे .. फट जाता है। अर्थात-यहाँ से दो श्रेणियाँ प्रारम्भ होती हैं-एक उपशम श्रेणी और दूसरी क्षपक श्रेणी। उपशम श्रेणी में मोहनीय कर्म की उत्तरप्रकृतियों का उपशम. किया जाता है, जबकि क्षपक श्रेणी में मोहनीय कर्म की उत्तरप्रकृतियों को मूल से नष्ट (क्षय) किया जाता है। उपशम श्रेणी में तो उक्त प्रकृतियों के उदय को शान्त कर दिया जाता है, प्रकृतियों की सत्ता तो बनी रहती है, वे सिर्फ अन्तर्मुहूर्त के लिए अपना फल आदि नहीं दे सकतीं; जबकि क्षपक श्रेणी में तो उन प्रकृतियों की सत्ता ही नष्ट कर दी जाती है, जिससे उनके पुनः उदय होने का भय नहीं रहता। यही कारण है कि उपशम श्रेणी में तो पतन का भय बना रहता है, जबकि क्षपक श्रेणी में पतन का भय बिलकुल नहीं रहता । किन्तु दोनों ही श्रेणियों में मोहनीय कर्म की उत्तरप्रकृतियों का सर्वथा उपशमन या सर्वथा क्षय किया जाता है। उपशम श्रेणी द्वारा ऊर्ध्वारोहण का मार्ग .
उपशमश्रेणी का स्वरूप, प्रारम्भ और पतनक्रम अब हम पहले उपशमश्रेणी का स्वरूप और उसके आरोहण की पूर्वभूमिका तथा आरोहण के क्रम के सम्बन्ध में प्रतिपादन करते हैं।
१. (क) अण-दंस-नपुंसित्थी-वेयछक्कं च पुरिसवेयं च।
दो दो एगंतरिए सरिसे सरिसं उवसमेइ ॥ ९८॥ . -कर्मग्रन्थ भा.५ . (ख) पंचम कर्मग्रन्थ गा. ९८ विवेचन (पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री), पृ. ३१३ . (ग) तुलना करें-अण-दंस-नपुंसित्थी-वेय-छक्कं च पुरिसवेयं च ॥ ___दो दो एगंतरिए , सरिसे सरिसं उवसमेइ॥ -आवश्यक नियुक्ति, गा. ११६
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