SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ सावधान करते हुए कहा गया है-पद-पद पर आशंकित होकर, फूंक-फूंक कर इस संसार में बहुत कुछ पाश-बंधन में जकड़ने वाले मानकर चले। ___ शास्त्र में गुरुकर्मी और लघुकर्मी का सुन्दर वर्णन प्रस्तुत किया गया है। जो प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शनशल्य आदि १८ पापों का मन, वचन, काया से सेवन करता-कराता है, अनुमोदन करता है, पाप कर्मबन्ध करते समय जरा भी नहीं हिचकता, बेखटके नि:शंक होकर पापकर्म किये जाता है, वह गुरुकर्मा-भारी कर्मा होता है, बल्कि कभी-कभी तो वह निकाचित रूप से कर्म बाँध लेता है, जिसे उदय में आने पर वह रो-रो कर भोगता है। ऐसे पापकर्मों (पापस्थानों) से जीव कर्मों से भारी हो जाता है। इसके विपरीत जो कर्म करते समय सावधानी रखता, जयणा और विवेकपूर्वक अपनी चर्या, प्रवृत्ति, वृत्ति, चिन्तन, क्रिया, चेष्टा आदि करता है, इन १८ पापस्थानों से बचता है, वह लघुकर्मा होकर शीघ्र ही संसार-सागर को पार कर जाता है। शुभ-अशुभ दोनों प्रकार के कर्मों का क्षय करके वह एक दिन सिद्ध-बुद्ध मुक्त हो जाता है। १. चरे पयाइं परिसंकमाणो, जं किंचि पासं इह मन्नमाणो। -उत्तराध्ययन। २. (क) कहं णं भंते ! जीवा गरुयत्तं हव्वमागच्छंति ? गोयमा ! पाणाइवाएणं, मुसावाएणं, अदिण्णा दाणेणं, मेहणेणं, परिग्गहेणं, कोह-माण-कमाया-लोभ-पेज-दोस-कलह, अब्भक्खाणं-पेसुन्न-अरति-रतिपरपरिवाय-मायामोस-मिच्छादंश्सणसल्लेणं, एवं खलु गोयमा ! जीव गरुयत्तं हव्वमागंच्छंति । -भगवती सूत्र श. १, उ. ९। (ख) "कहं णं भंते ! जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति ? गोयमा ! पाणाइवाइय-वेरमणेणं जाव मिच्छादसण-सल्ल-वेरमणेणं । एवं खलु जीवा लहुयत्तं हव्वमागच्छंति ॥" . -भगवती सूत्र श. १, उ. ९. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy