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४७२ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ होने वाले परिणाम (आत्मा की अवस्था या पर्याय) को औपशमिक कहते है। अथवा उपशम से प्रगट हुए या निष्पन्न हुए भाव को औपशमिक भाव कहते हैं। पंचास्तिकाय के अनुसार- 'उपशम से युक्त भाव औपशमिक है।
उपशम किस कर्म का, कौन-कौन-सा और क्यों? अब यह प्रश्न उठता है कि यहाँ उपशम किस कर्म का होता है? ज्ञानावरणीय आदि आठों कर्मों में से मोहनीय कर्म में ही उपशम भाव प्राप्त होता है, अन्य कर्मों में नहीं। इसका कारण यह है कि मोहनीय कर्म का सर्वथा उपशम होने से जैसेउपशम भाव का सम्यक्त्व और उपशमभावरूप यथाख्यातचारित्र (कषायों का क्षणिक शमन) होता है, उसी प्रकार से ज्ञानादि गुणों की पूर्ण स्वच्छता हो जाने पर.या सर्वज्ञता प्रगट हो जाने पर वह पुनः विलीन हो जाए, यह सम्भव नहीं। तथैव ज्ञानावरणीयादि कर्मों का उपशम होने से थोड़ी देर के लिए तथारूप केवलज्ञान आदि गुण उत्पन्न ही नहीं होते हैं।
उपशम के दो प्रकार हैं- देशोपशम और सर्वोपशम। उनमें से यहाँ देशोपशम की नहीं, सर्वोपशम की विवक्षा समझनी चाहिए; क्योंकि देशोपशम तो आठों ही कर्मों का होता है, जो कार्यकारी नहीं है।
१. (क) सर्वार्थसिद्धि २/१ पृ. १४९
(ख) कर्मसिद्धान्त (व्र. जिनेन्द्र वर्णी), पृ. ११३ (ग) तत्त्वार्थसूत्र विवेचन (उपाध्याय श्री केवलमुनिजी) पृ. ७९ (घ) अध्यात्मकमलमार्तण्ड ३/८ (ङ) कर्मग्रन्थ भा. ४, विवेचन (पं. सुखलालजी) पृ. १९६ (च) उपशमो विपाक-प्रदेशरूपतया द्विविधस्याप्युदयस्य विष्कम्भणं, उपशमः प्रयोजनमस्येयौपशमिकः।।
-सर्वार्थसिद्धि २/१/१४९/९ (छ) आत्मनि कर्मणः स्वशक्तेः कारणवशादनुभूतिरुपशमः। उपशमः प्रयोजनमस्येत्यौपशमिकः।
-सर्वार्थसिद्धि २/१/१४९/९ (ज) तेषामुपशमादौपशमिकः।
-धवला ५/१, ७, १/१८७ (ब) उपशमेन युक्तः औपशमिकः।
-पंचास्तिकाय त. प्र. ५६/१०६ २. (क) पंचसंग्रह भा. ३, विवेचन, पृ. ९३
(ख) कर्मसिद्धान्त (ब्र. जिनेन्द्रवर्णी), पृ. ११२ (ग) धवला आदि ग्रन्थों में औपशमिक भाव के भेद-प्रभेदों का विस्तृत विवेचन है,
जिज्ञासु देखें।
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