________________
४०८ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
चार तथा इस गुणस्थान में मृत्यु न होने से अपर्याप्त अवस्थाभावी कार्मण, औदारिक मिश्र और वैक्रिय मिश्र, ये तीन योग भी नहीं होते। यों दूसरे गुणस्थान के ५० बन्धहेतुओं में से उक्त सात बन्धहेतु कम हो जाने से शेष तेतालीस उत्तरबन्धहेतु तीसरे गुणस्थान में रहते हैं ।
चतुर्थ गुणस्थान ( अविरति - सम्यग्दृष्टि) में छयालीस बन्धहेतु हैं । चूंकि चौथा गुणस्थान अपर्याप्त अवस्था में भी पाया जाता है। इसलिए इसमें अपर्याप्त -. अवस्थाभावी कार्मण, औदारिक मिश्र और वैक्रियमिश्र ये तीन योग सम्भव हैं। अत: तीसरे गुणस्थान-सम्बन्धी ४३ बन्धहेतुओं में इन तीन योगों को मिलाने से कुल ४६ उत्तरबन्धहेतु चतुर्थ गुणस्थान में समझने चाहिए।
पांचवें देशविरति गुणस्थान में उनतालीस बन्धहेतु हैं। इसका कारण यह है कि यह गुणस्थान पर्याप्त-अवस्थाभावी है। अतएव इसमें कार्मण और औदारिकमिश्र, ये दो योग नहीं होते हैं। अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय- चतुष्क का उदय चौथे गुणस्थान तक ही होने से, उसका पांचवें गुणस्थान में अभाव होने से तथा पांचवें गुणस्थान देशविरति (आंशिक संयम) रूप होने से उसमें त्रसकायिक जीवहिंसा का त्याग होता है, अतएव त्रस - अविरति, भी नहीं है। इस तरह चतुर्थ गुणस्थान सम्बन्धी छयालीस उत्तरबन्धहेतुओं में से कार्मण, औदारिकमिश्र अप्रत्याख्यानावरणीय कषाय- चतुष्क और त्रस अविरति इन सात बन्धहेतुओं को कम करने से पंचम गुणस्थान में उनतालीस बन्धहेतु रहते हैं । इन उनतालीस हेतुओं में वैक्रियमिश्र काययोग शामिल है, पर वह अपर्याप्त अवस्थाभावी नहीं, किन्तु वैक्रियलब्धिजन्य है, जो पर्याप्तअवस्था में ही होता है। पंचम गुणस्थान में संकल्पजन्य त्रसहिंसा तो सम्भव ही नहीं, आरम्भजन्य-त्रसहिंसा अवश्य सम्भव है, मगर बहुत कम। इसलिए आरम्भजन्य त्रसहिंसा की विवक्षा न करके उनतालीस हेतुओं में त्रस - अविरति की गणना नहीं ? गई है।
१. (क) पणपन्न मिच्छिहारग, दुगूण सासाणि पन्नमिच्छ विणा । मिस्स दुगकंम अण- विणु तिचत्त मीसे अह छ चत्ता ॥ ५५ ॥ सदुमिस्सकंम अजए, अविरइ - कम्मुरल- मीस - बि- कसाये । मुत्तुगुण चत्त देसे छवीस साहार दु पमत्ते ॥५६॥ अविरइ-इगार-तिकसाय- वज्ज अपमत्ति मीस - दुग-रहिया । चवीस अपव्वे पुण, दुवीस अविउव्वियाहारा ॥ ५७ ॥ (ख) चतुर्थ कर्मग्रन्थ, गा० ५५ से ५७ विवेचन (प० सुखलाल जी), पृ० १८२ से
- चतुर्थ कर्मग्रन्थ
१८५
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org