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३५४ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ रहते हैं। भव्यों के दो प्रकार किये जा सकते हैं- अपरिपक्व तथा भव्य और परिपक्व तथा भव्य। जिसका भव्यत्व परिपक्व नहीं हुआ है, वह भव्य होने पर भी सूक्ष्म निगोदरूप अव्यवहार राशि में ही अनन्तकाल बिताता है; वह अपरिपक्व तथा भव्य है। किन्तु जो तथाभव्य सूक्ष्म अव्यवहार राशि निगोद में अनन्त जन्म बिताने के पश्चात् अकामनिर्जरा आदि उपयोगी एवं सहयोगी कारणों से तथाभव्यत्व परिपक्व होने पर सूक्ष्म अव्यवहार राशि में से निकलकर बादर-पर्याय में आता है। और क्रमशः ८४ लक्ष जीवयोनियों से युक्त चतुर्गतिक भव-परम्परा में आगे बढ़ता हुआ तथा सुखदु:ख के थपेड़े खाता हुआ अनन्तपुद्गलपरावर्तकाल व्यतीत करके चरमावर्त में प्रदेश करता है, वह परिपक्व तथा भव्य है।
परिपक्व तथाभव्यत्व की प्रक्रिया और उसका स्वरूप चरमावर्त का अर्थ है- कालचक्र का अन्तिम आवर्त यानी वलय। जिस प्रकार तेली का बैल दिन-रात घूमता हुआ अन्तिम बार के चक्कर में आ कर खड़ा रहता है, उसी प्रकार भव्यजीव भी संसार में चक्कर लगाता-लगाता अथवा तथाभव्यत्व परिपक्व होने के कारण अन्तिम बार के पुद्गलपरावर्तकाल के चक्र (गोले) में यानी चरमावर्त में प्रवेश करता है। जिस प्रकार चूल्हा, अग्नि का तीव्र ताप, वायु, पानी, चावल, दाल, तपेली आदि सहयोगी कारणों से चूल्हे पर चढ़ाई हुई खिचड़ी के परिपक्व होने पर उसे अन्तिम बार देखकर नीचे उतार ली जाती है, उसी प्रकार अनन्तसंसार के दुःखों से दुःखित होता हुआ, चारों गतियों तथा ८४ लाख जीवयोनियों में अनन्त पुद्गल परावर्तकाल बिताता हुआ तथाभव्यत्व परिपक्व होने पर भवभ्रमण के अन्तिम पुद्गल परावर्त चक्र के चरणकाल में पहुंचता है। जैसे प्रकाश, पानी, हवा आदि सहयोगी कारण मिलने पर बीज से अंकुर उत्पन्न होता है,
और वह वृक्ष बनने की दिशा में आगे से आगे बढ़कर अपनी जड़ें पक्की जमा लेता है, वैसे ही काल, स्वभाव, नियति, पूर्वकृतकर्म और पुरुषार्थ आदि पांच कारण समवाय के योग से, तीव्र अकामनिर्जरा के बल पर जीव अपना तथाभव्यत्व परिपक्व करता है। सभी जीवों में भव्यत्व समान होते हुए भी उस अवस्था में तथाभव्यत्व एक विशेष प्रकार का होता है। उदाहरणार्थ- एक ही प्रकार के भिन्न-भिन्न पात्रों में पड़े हए दूध में से किसी एक पात्र के दूध में केसर, बादाम, पिश्ता, इलायची आदि विशिष्ट पदार्थों के मिलाने से उस दूध में विशेषता पैदा हो जाती है। वैसे ही सब जीवों में भव्यत्व समान होते हुए भी काल, स्वभाव आदि पांच कारण-समवायों का विशेष निमित्त रूप सहयोग मिलने से किसी विशेष भव्य जीव का तथाभव्यत्व . परिपक्व हो जाता है। ऐसा परिपक्व तथाभव्यत्व सामान्य भव्य के भव्यत्व से भिन्न
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