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________________ . कर्मबन्धों की विविधता एवं विचित्रता १७ भूयस्कार बन्ध हुआ। तथा जिननाम कर्म-सहित ५८ का बन्ध होने पर तेरहवाँ भूयस्कार बन्ध हुआ, अप्रमत्तगुणस्थान में उन ५८ के साथ देवायु का बन्ध होने पर ५९ का बन्ध होने पर चौदहवाँ भूयस्कार बन्ध हुआ। देशविरति गुणस्थान में देवप्रायोग्य २८ प्रकृतियों का बन्ध करने के साथ ५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १ वेदनीय, १३ मोहनीय, १ देवायु, २५ नामकर्म की, १ गोत्रकर्म की और ५ अन्तराय की, यों कुल ६० प्रकृतियों के बांधने से पन्द्रहवाँ भूयस्कारबन्ध हुआ। इन ६० के साथ तीर्थंकरनाम का भी बन्ध करने से ६१ के बन्ध का सोलहवां भूयस्कारबन्ध (यहाँ किसी भी तरह एक जीव को एक समय में ६२ प्रकृतियों का बंध सम्भव नहीं, अत: उसका भूयस्कार भी नहीं कहा है।) हुआ। चौथे गुणस्थान में आयु के अबन्धकाल में देवप्रायोग्य नामकर्म की २८ प्रकृतियों को बांधने पर ज्ञानावरणीय की ५, दर्शनावरणीय की ६, वेदनीय की १, मोहनीय की १७, गोत्र की १, नामकर्म की २८ और अन्तराय की ५, इन कुल ६३ प्रकृतियों का बन्ध करने से सत्रहवां भूयस्कारबन्ध होता है। देवायु के बंध सहित पूर्वोक्त ६३ का बन्ध करने से ६३+१=६४ प्रकृतियों के बंध का अठारहवाँ भूयस्कार बन्ध होता है। जिननामकर्म सहित ६५ को बांधने पर उन्नीसवाँ भूयस्कारबन्ध होता है। चौथे गुणस्थान में देव हो और उसके द्वारा मनुष्य-प्रायोग्य ३० प्रकृतियों के बांधने पर ६६ के बन्ध होने पर बीसवाँ भूयस्कारबन्ध हुआ। - मिथ्यात्वगुणस्थान में ५ ज्ञानावरण की, ९ दर्शनावरण की, १ वेदनीय की, २२ मोहनीय की, १ आयुष्य की, २३ नामकर्म की, १ गोत्र की और ५ अन्तराय की, इन् कुल ६७ प्रकृतियों का बन्ध करने पर इक्कीसवाँ भूयस्कार बन्ध होता है। इनमें नामकर्म की २५, (पहले से दो अधिक) और आयु को कम करने पर २+६६-६८ प्रकृतियों का बाईसवाँ भूयस्कार बन्ध, आयु-सहित ६९ का बन्ध करने पर तेईसवाँ भूयस्कार बन्ध हुआ। नामकर्म की २५+१=२६ प्रकृतियों सहित ७० प्रकृतियों को बांधने से चौबीसवाँ भूयस्कार बन्ध हुआ। तथा आयुरहित नामकर्म की २६+२-२८ प्रकृतियों सहित ७१ प्रकृतियों को बांधने पर पच्चीसवाँ भूयस्कार बन्ध; तथा नामकर्म की उनतीस प्रकृतियों के साथ बहत्तर के बन्ध का छब्बीसवाँ भूयस्कार बन्ध, आयु सहित ७३ का बन्ध करने पर सत्ताइसवाँ भूयस्कार बन्ध और ज्ञानावरण की ५, दर्शनावरण की ९, वेदनीय की १, मोहनीय की २२, आयु की १, नामकर्म की ३०, गोत्र की १ और अन्तराय कर्म की ५, यों कुल ७४ प्रकृतियों का बन्ध करने से अट्ठाइसवाँ भूयस्कार होता है। - यहाँ प्रकारान्तर से अनेक बन्धस्थान सम्भव हैं, जिनका स्वयं विचार कर लेना चाहिए। इसी प्रकार आरोहण क्रम (विपरीत क्रम) से अट्ठाइस ही अल्पतर बन्ध हैं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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