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१६ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
निष्कर्ष यह है कि कर्मप्रकृति की संख्या में परिवर्तन हुए बिना अधिक बांध कर कम बांधना और कम बांधकर अधिक बांधना केवल एक बार ही सम्भव है; जबकि पहली बार बांधे हुए कर्मों के बराबर पुनः उतने ही कर्मों को बांधना पुनः सम्भव है। इसलिए अवस्थितबन्ध लगातार कई समय तक हो सकता है, किन्तु शेष तीन बन्धों में ऐसा सम्भव नहीं है।
उत्तरप्रकृतियों के बन्धस्थान और भूयस्कारादि बन्ध बन्धस्थान-सामान्यतया उत्तरप्रकृतियों के २९ बन्धस्थान होते हैं। वे इस प्रकार हैं-एक, सत्रह, अठारह, उन्नीस, बीस, इक्कीस, बाईस, छब्बीस, त्रेपनं, चौवन पचपन, छप्पन, सत्तावन, अट्ठावन, उनसठ, साठ, इकसठ, त्रेसठ, चौंसठ, पैंसठ छियासठ, सड़सठ, अड़सठ, उनहत्तर, सत्तर, इकहत्तर, बहत्तर, तिहत्तर और चौहत्तर। ये कुल उनतीस बन्ध-स्थान हैं, जिनमें अट्ठाइस भूयस्कार बन्ध होते हैं।
अट्ठाइस भूयस्कारबन्ध-उपशान्तमोह गुणस्थान में एकमात्र वेदनीय का बन्ध . करके, गिरते समय दसवें गुणस्थान में ज्ञानावरण पांच, दर्शनावरण ४, अन्तसय ५, उच्चगोत्र और यशः कीर्ति के साथ वेदनीय का बंध मिलाकर १६+१=१७ प्रकृति के बन्ध से प्रथम समय में प्रथम भूयस्कार बन्ध होता है। , ____दसवें गुणस्थान से पतित होकर नौवें गुणस्थान में संज्वलन लोभ के साथ १८ प्रकृतियों का बन्ध करने से दूसरा भूयस्कार बन्ध हुआ। संज्वलन माया के साथ १९ प्रकृतियों को बांधने से तीसरा भूयस्कार बन्ध और संज्वलन मान के साथ २० को बांधने से चौथा भूयस्कार बन्ध, संज्वलन क्रोध के साथ २१ का बन्ध करने से पांचवाँ भूयस्कार बन्ध तथा पुरुषवेद के साथ २२ का बन्ध करने से छठा भूयस्कार बन्ध हुआ। फिर उसके साथ हास्य, रति, भय और जुगुप्सा इन ४ प्रकृतियों का अधिक बन्ध करने से अपूर्वकरण के सातवें भाग में २६ का बंध करने से सातवाँ भूयस्कार, बन्ध होता है। उसके मध्य आठवें गुणस्थान के छठे भाग में देवप्रायोग्य नामकर्म की २७ प्रकृतियों का बंध करने से आठवाँ भूयस्कार बन्ध ५३ प्रकृतियों का हुआ। फिर तीर्थंकर नामकर्म-सहित देवप्रायोग्य २९ प्रकृतियों को बांधने से कुल ५४ प्रकृतियों के बन्ध का नौवाँ भूयस्कार बन्ध हुआ। तथा आहारकद्विकसहित तीस का बन्ध करने से ५५ के बन्ध का दसवाँ भूयस्कार बन्ध हुआ। और इन पचपन को तीर्थंकर नामकर्म-सहित. बांधने से ५६ का ग्यारहवाँ भूयस्कार बन्ध तथा अपूर्वकरण के प्रथम भाग में छप्पन में से जिननामकर्म को छोड़कर तथा निद्रा और प्रचला-सहित बांधने से ५५ + २ =५७ के बंध में बारहवाँ १. पंचम कर्मग्रन्थ गा. २२ व्याख्या (मरुधरकेसरीजी) पृ. ९५, ९६
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