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मार्गणाओं द्वारा गुणस्थानापेक्षया बन्धस्वामित्व - कथन २६५
नरक गति के अधिकारी नारकों के लक्षण
नरक गति के अधिकारी नारक का लक्षण एवं व्युत्पत्तिलभ्य अर्थ कर्मशास्त्रियों ने इस प्रकार दिया है - नरक गति नामकर्म के उदय से जो नरक में उत्पन्न हो, अथवा नरान् - जीवों को, कायन्ति यानी क्लेश पहुँचाएँ, उन्हें नारक कहते हैं, या द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से जो स्वयं तथा परस्पर एक दूसरे के साथ आराम, आमोद या प्रेम न पाते हों, उन्हें नारक कहते हैं। नरक गति में नारक वहाँ के द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से नित्य ही अशुभतर लेश्याओं, परिणामों, शारीरिक, मानसिक वेदनाओं तथा विक्रियाओं से सदैव दुःखी और पीड़ित रहते हैं । १
नरक गति में सामान्यतया कितनी प्रकृतियों का बन्ध ?
नरक गति में सामान्यतया जो १०१ प्रकृतियों का बन्ध बताया गया है, वह इस प्रकार है, बन्ध योग्य १२० प्रकृतियों में सुरद्विक आदि १९ प्रकृतियों को कम करने से १०१ प्रकृतियाँ शेष रहती हैं। इन १९ प्रकृतियों का भवस्वभाव के कारण नरक गति में नारक जीवों के बन्ध ही नहीं होता है। उन्नीस प्रकृतियाँ ये हैं- (१) देव गति, (२) देवानुपूर्वी, (३) वैक्रिय शरीर, (४) वैक्रिय अंगोपांग, (५) आहारक शरीर, (६) आहारक अंगोपांग, (७) देवायु, (८) नरक गति, (९) नरकानुपूर्वी, (१०) नरकायु, (११) सूक्ष्मनाम, (१२) अपर्याप्त नाम, (१३) साधारण नाम, (१४) द्वीन्द्रिय जाति, (१५) त्रीन्द्रिय जाति, (१६) चतुरिन्द्रिय जाति, (१७) एकेन्द्रिय जाति, (१८) स्थावर नाम तथा (१९) आतप नामकर्म ।
नरक गति में सामान्यतया ये १९ प्रकृतियाँ क्यों नहीं बंधतीं ?
१९ प्रकृतियाँ नरक गति में नहीं बंधती हैं; क्योंकि जिन स्थानों में उक्त उन्नीस प्रकृतियों का उदय होता है, नारक जीव नरक गति से निकल कर उन स्थानों में
१. (क) सुर - इगुणवीसवज्जं इगसउ ओहेण बंधहि निरया ।
तित्थ - विणा - मिच्छि, सय सारुणि नपु चउ विणा छनुइ ॥ ४ ॥
- तृतीय कर्मग्रन्थ विवेचन, पृ. १३
नरान् कायन्तीति नारकः।
(ग) ण रमंति जदो णिच्चं दव्वे खेत्ते य काले भावे य । अणोहिं जम्हा तम्हा ते णारया भणिया । (घ) नित्याऽशुभतर लेश्या - परिणाम - देह - वेदना - विक्रिया ॥ २. पंच णव दोण्णि छव्वीसमवि य चउरो कमेण सत्तट्ठी ।
दोणि य पंच य भणिया एयाओ बेधसपयीओ ॥
- गोम्मटसार कर्मकाण्ड ३५
सामान्य बन्धयोग्य प्रकृतियाँ १२० इस प्रकार हैं - ५, ९, २, २६, ४, ६७, २, ५ = १२० ।
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- गोम्मटसार जीवकाण्ड 146
- तत्त्वार्थ सूत्र ३/३
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