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________________ . . .. मार्गणास्थान द्वारा संसारी जीवों का सर्वेक्षण-२ चौदह मार्गणाओं के बासठ उत्तरभेदों द्वारा जीवस्थान आदि ६ का सर्वेक्षण गति, इन्द्रिय आदि चौदह मार्गणास्थानों के उत्तरभेद बासठ होते हैं। इन बासठ मार्गणास्थानों के माध्यम से कर्मविज्ञानवेत्ताओं ने संसारी जीवों की विविध अवस्थाओं और पर्यायों का विविध पहलुओं से सर्वेक्षण किया है। पूर्वोक्त मार्गणास्थानों के माध्यम से कर्मग्रन्थ में छह सर्वेक्षणीय. विषयों पर विवेचना की गई है-(१) जीवस्थान, (२) गुणस्थान, (३) योग, (४) उपयोग, (५) लेश्या और (६) अल्पबहुत्व। मार्गणास्थानों में जीवस्थान की प्ररूपणा गतिमार्गणा की दृष्टि से देवगति और नरकगति, इन दोनों गतियों में संज्ञीद्विक (पर्याप्त, अपर्याप्त संज्ञी) ये दो जीवस्थान माने जाते हैं; क्योंकि इन दोनों गतियों में वर्तमान कोई भी जीव असंज्ञी नहीं होते, चाहे पर्याप्त हों, या अपर्याप्त; सभी संज्ञी ही होते हैं। - इसी प्रकार विभंगज्ञान सम्पन्न में पर्याप्त-अपर्याप्त संज्ञी ये दो ही जीवस्थान माने हैं, क्योंकि विभंगज्ञान को पाने की योग्यता किसी असंज्ञी में नहीं होती। मतिज्ञान, १. पंचसंग्रह द्वार १, गा. २७वीं में उल्लेख है कि विभंगज्ञान में संज्ञि-पर्याप्त एक ही जीवस्थान है, परन्तु यह अपेक्षा विशेष से कहा है। इसलिए कर्मग्रन्थ के मन्तव्य के साथ कोई विरोध नहीं है। आचार्य मलयगिरि ने उक्त २७वीं गाथा में स्पष्ट किया है (शेष पृष्ठ २२७ पर) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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