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२२४ · कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ
असंज्ञित्व-उक्त-लक्षण-विशिष्ट संज्ञा का न होना असंज्ञित्व है, संज्ञित्व-विहीन जीव असंज्ञी कहलाते हैं।
(१४) आहारक-मार्गणा के भेद और उनका स्वरूप आहारक मार्गणा के दो भेद हैं-आहारक और अनाहारक।
आहारक-ओज, लोम और कवल इनमें से किसी भी प्रकार के आहार को करने वाले जीव को आहारक' कहते हैं।
अनाहारक-पूर्वोक्त तीन प्रकार के आहारों में से किसी भी प्रकार का आहार. ग्रहण न करने वाला जीव अनाहारक कहलाता है।
चौदह मार्गणास्थानों के अवान्तर भेद : बासठ इस प्रकार मार्गणास्थान के मूलभेद गति, इन्द्रिय आदि १४ तथा उनके चार, पांच आदि अवान्तर भेद, कुल मिलाकर बासठ हैं। बासठ भेदों की संख्या इस प्रकार है
(१) गति चार, (२) इन्द्रिय पांच, (३) काय छह, (४) योग तीन, (५) वेद तीन, (६) कषाय चार, (७) ज्ञान आठ (पांच ज्ञान और तीन अज्ञान), (८) संयम सात (पांच संयम, देशविरति, अविरति), (९) दर्शन चार, (१०) लेश्या छह, (११) भव्य दो, (१२) सम्यक्त्व छह (सम्यक्त्वत्रय, सास्वादन, मिश्र, मिथ्यात्व), (१३) संज्ञी दो और (१४) आहारक दो (आहारक-अनाहारक); यों १४ मार्गणा के अवान्तर भेद कुल बासठ (६२) होते हैं।३ ।।
भावमार्गणास्थानों का ग्रहण करना अभीष्ट ध्यान रहे कि मार्गणा-प्रकरण में सर्वत्र भावमार्गणास्थानों का ही ग्रहण करना अभीष्ट है। अतः 'धवला' के अनुसार सर्वत्र प्रत्यक्षीभूत भावमार्गणास्थानों का ग्रहण करना चाहिए, द्रव्यमार्गणाओं का नहीं; क्योंकि द्रव्यमार्गणाएँ देश, काल और स्वभाव की अपेक्षा दूरवर्ती हैं। अतएव अल्पज्ञों को उनका प्रत्यक्ष नहीं हो सकता।
१. विशिष्ट-स्मरणादिरूप-मनोविज्ञानभाक् संज्ञी, इतरोऽसंज्ञी सर्वोऽप्येकेन्द्रियादिः।
-चतुर्थ कर्म ग्रन्थ स्वोपज्ञ टीका, पृ. १४२ २. ओजो-लोम-प्रक्षेपाहाराणामन्यतममाहारमाहारयतीत्याहारकः। इतरः अनाहारकः।
-चतुर्थ कर्मग्रन्थ स्वोपज्ञ टीका पृ. १४२ ३. चउ-पण-छ-तिय-तिय-अट्ठ-चउ-सग चउ छच्च दु छग दो दुन्नि। गइयाइ-मग्गणाणं इय उत्तरभेयं बासट्ठी॥
-पंचसंग्रह १/२६
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