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________________ २१२ कर्म विज्ञान : भाग ५ : कर्मबन्ध की विशेष दशाएँ (८) सयममार्गणा के भेद और उनका स्वरूप संयम-मार्गणा के सात भेद हैं-(१) सामायिक, (२) छेदोपस्थापनीय, (३) परिहार-विशुद्धि, (४) सूक्ष्म-सम्पराय, (५) यथाख्यात, (६) देश-विरति और (७) अविरति (असंयम)। १. सामायिक-संयम-रागद्वेष के अभाव को समभाव कहते हैं; और जिस संयम (चारित्र-साधना) से समभाव की प्राप्ति हो, वह सामायिक संयम है। अथवा ज्ञान, दर्शन और चारित्र को सम कहते हैं, उनकी आय-लाभ या प्राप्ति होने को. समाय, तथा समाय के भाव को या समाय को सामायिक कहते हैं। सामायिक संयम के दो प्रकार हैं-इत्वर और यावत्कथित। इत्वरसामायिक वह है, जो अभ्यासार्थी (नवदीक्षित) शिष्यों को स्थिरता प्राप्त करने के लिये पहले पहल दिया जाता है; जिसकी काल-मर्यादा उपस्थापन-पर्यन्त (बड़ी दीक्षा लेने तक) मानी जाती है। यह संयम भरत और ऐरवत क्षेत्र में प्रथम और अन्तिम तीर्थंकर के शासन के समय अंगीकार किया जाता है। इस संयम के धारण करने वाले साधक को प्रतिक्रमण-सहित अहिंसादि पांच महाव्रत अंगीकार करने पड़ते हैं, और इसके अधिकारी स्थविरकल्पी साधु-साध्वी होते हैं। (पृष्ठ २११ का शेष) (ख) अवधानमवधिः-इन्द्रियाद्यनपेक्षमात्मनः साक्षादर्थग्रहणम्, यद्वा अवधिः-मर्यादा रूपिष्वेव द्रव्येषु परिच्छेदकतया प्रवृत्तिरूपा तदुपलक्षितं ज्ञानमप्यवधिः। अवधिश्च तद्ज्ञानं च अवधिज्ञानम्। -चतुर्थ कर्मग्रन्थ स्वोपज्ञ टीका, पृ. १२९ (ग) मनसि मनसो वा पर्यवो मनःपर्यवः सर्वतस्तत्परिच्छेद इत्यर्थः। मनःपर्यवश्च तद्ज्ञानं मनःपर्यवज्ञानम्। यद्वा मनःपर्यायज्ञानम् तेषां (संज्ञि जीवानां) मनसां पर्यायाः-चिन्तनानुगाः परिणामा-मनःपर्यायाः। तेषु तेषां च सम्बन्धि ज्ञानम्-मन:पर्यायज्ञानम्। (घ) शुद्धं वा केवलं तदावरण-मल-कलंक-पंकावगमात् यथावस्थित भूतभवद्-भावि-भावावभासि ज्ञानमिति। ___-चतुर्थ कर्मग्रन्थ, स्वोपज्ञ टीका, पृ. १२९ (ङ) केवलं-एकं मत्यादिरहितत्वात् नट्ठम्मि उ छाउमथिए नाणे। -आवश्यकनियुक्ति गा. ५३९ (च) चतुर्थ कर्मग्रन्थ गा. ११ विवेचन (मरुधरकेसरीजी) पृ. ११५ से ११९ (छ) वि-विशिष्टस्य अवधिज्ञानस्य भंगः विपर्ययः, इति विभंगः। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004246
Book TitleKarm Vignan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year
Total Pages614
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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